Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 46
________________ September-2006 41 १०. इसमें मज्जापद्र (मजावड़ा) विषम पर्वतों से घिरा हुआ है । यहाँ ५२ जिनालय से मण्डित प्रशस्त चैत्य है । मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं । और खागहड़ी में अनेक बिम्बों से युक्त शान्तिनाथ भगवान को नमस्कार करता है। इसमें पद्राटक (बड़ौदा/बाँसवाड़ा) ग्राम में श्रेष्ठतम महावीर स्वामी का मन्दिर है, चौवीस मण्डपिकाओं से युक्त स्वर्णवर्णी पार्श्वनाथ विराजमान हैं । दूसरा मन्दिर भी पार्श्वनाथ का है । उसमें भी विराजमान समस्त जिनेश्वरों को कवि नमस्कार करता है । इस पद्य में मत्स्येन्द्रपुर (वर्तमान में मचीन्द) में विराजमान, पार्श्वनाथ, शान्तिनाथ आदि जिनवरों को नमस्कार करता है और श्यामवर्णी पार्श्वनाथ को नमस्कार करता है। ___ इस पद्य में पहाड़ो में मध्य में कपिलवाटक (सम्भवतः केलवाड़ा) को कवि ने राजधानी बताया है । सम्भव है राज्यों के उथल-पुथल में इसको राजधानी बनाया गया हो अथवा कुम्भलगढ़ को समृद्ध करने के पूर्व इसको राजधानी के रूप में माना हो । इस कपिलवाटक में उत्तुङ्ग तोरणों से युक्त पाँच जिनालय हैं, जिनमें नेमिनाथ, पार्श्वनाथ आदि मुख्य हैं । उन सबको कवि ने प्रणाम किया है ।। वैराट अपरनाम वर्द्धनपुर (बदनोर) ऊंचे पहाड़ियों के मध्य में बसा हुआ है । यहाँ तेरह जिनमन्दिर तोरणों से शोभायमान हैं और उनमें आदिनाथादि प्रमुख मूलनायक हैं । पर्वतों के मध्य में ही खदूरोतु (?)में पार्श्वनाथ का जिनमन्दिर हैं । १२वें पद्य में माण्डिल (माण्डल) ग्राम का वर्णन करते हुए कवि कहता है कि यहाँ पर जिनेश्वरों के पाँच मन्दिर हैं, जिसमें नेमिनाथादि मूलनायक प्रमुख हैं । शान्तिनाथ भगवान की मूर्ति आठ हाथ ऊँची है। १३. तेरहवें पद्य में प्रज्ञाराजी मण्डल (माण्डलगढ़) के दुर्ग पर ऋषभदेव और चन्द्रप्रभ के मन्दिर हैं । तथा विन्ध्यपल्ली (बिजौलिया) में ११. १२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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