Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 26
________________ September-2006 21 आगळ दोधकनो अंक आपेल छे. १. गंभीर (वृत्ति) =नम्रजनोना गुणदोषनो विचार करनार, २. रक्ष =राखवू, राखी लेवू, ३. वपुरे =बापडां [बप्पुड =देशीनाममाला प. ३८७], ४. रुषि =कृपा, ४- वहोरइ =(व्यवह) व्यवहार करे छे, आपे छे. ५. सधर =समर्थ सद्धर / २ अने ६ सेव्य, सेवयत सेवा शब्द उपरथी नामधातु प्रयोग. ६ नववीस =१८० > ९ x २०. २१ श्लाघयन्ति =श्लाघा शब्द उपरथी नाम धातु. ७ अने १० - सुवास = स्व > सुव + आश्रय = आस > सुवास =पोतानो आश्रय, तथा सुवास-सुगंध-आम चतुराई पूर्वक श्लेष करेल छे. एवं ज पयोयुग =दूध अने पाणी बन्ने अर्थोनो हंसनां उदा० मां श्लेष कर्यो छे. ९. दुंग =परिताप १४. चटति = चढे छे. १५. जबाधि =सुगन्धित पदार्थ. जे मार्जार जेवा प्राणीनां शरीरमां उत्पन्न थाय छे. १७. कार =माहात्म्य, प्रभाव, १७. वृत्ति - झम्पयति =अडके छे. स्पर्श छे. १९. अविनीतः अचतुराणि (वृत्ति)-असुन्दर. २१. सज्जन =मित्र, २४-वृत्ति कुसज्जन =कुमित्र. २३. गुडल-गंदु, झांखु, मेलु (पाणीना विशेषण तरीके वपरायुं छे.) २६, १० =सउ - सदृश सर-समान. २७- फुहडि -फुवड स्त्री. २८- तंबा =गाय, (देशीनाममाला ५.१) ३१. चीज =वस्तु. ३१. रुलिओ-(वृत्ति-)रुलितः =रोळ्यो, नाश पाम्यो. सूक्ति द्वात्रिंशिका मांथी प्राप्त थतो उपदेश. ३२ पद्य प्रमाण प्रसतुत लघुकृतिमां विपुल विषयवैविध्य न होय ए स्वाभाविक छे. छतां भगवद्भक्ति, सौजन्य, दुर्जनसंगत्याग, नम्रता ए गुणाधार छे, वगेरे उपदेश-विषयो कवितामां सर्जाईने रम्य अने हृद्य बन्या छे. __ प्रत्येक दोधकना पूर्वार्धमां उपदेश छे, अने उत्तरार्धमां तेनी पुष्टिमां उत्तम उदाहरणो छे. जेमके (१) भगवान दीनोद्धारक छे. शरणागतवत्सल छे. माटे तो श्रीरामे शरणागत बिभीषणने रावणगढनुं राज्य सोंपी दीधुं, (२) मूर्खने उपदेश हानिकारक बने छे. सर्पने दुग्धपान विषरूप ज बने छे.. (४) मोटानी महेरबानीथी बळ मळे छे. वराह-वानरोओ रामनी कृपाथी त्रिभुवनविजेता रावणर्नु लंकाराज्य लई लीधुं. (५) कारण के समर्थनां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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