Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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अनुसन्धान ३६
अच्चित्तेऽचित्तस्स वि साहारणे चेव १ माणियं लहुयं । पच्छित्तमिणं भणियं जिणेहिं जियरागदोसेहिं ॥४८॥ तेत्तीसुत्तरेणं सएण दोसाणं लहुमासियाहिगारो छ।। इत्तिरिय ठावणाए १ ससिणिद्ध १ ससरक्खमक्खिय १ करेसु । बीएहिं उम्मीसे १ सुहुमाए पाहुडीयाए १ ॥४९॥ मीसपरित्तपरंपर-निक्खिविउं १ मीस १ पिहिय १ साहरिय (ए) ११ अपरिणयपछड्डिएसुं १ तित्थेसरसमयभणिएसु ॥५०॥ मीसाणंतपरंपर - निक्खिविउं १ म्मीस १ पिहिय १ साहरिय (ए) १।। अपरिणय१ छड्डिएसुं १ साहारणे बीयकायुवरि ॥५१॥ पत्तेगेगिंदियजीव-घट्टणादायपायपच्छित्तं । पत्तेए लहुपणगं गुरुपणगमणंतगे उ तहिं ॥५२॥ वय तव खवणायंबिल-एगासण पुरिमनिव्विगइयाणि । लहु लहुतराणि कमसो तहा तहा मूलपमुहाणि ॥५३।। इइ सयलदोसविसयं पच्छित्तं जाणिऊण गीयत्था । गुरुलहुविभावणाए रक्खंति तणुं जिणाणाए ॥५४॥ पंचदसगाइकमेणं जइ वि पच्छित्तमागमे नत्थि । तहवि हु तिगाइ गणणा दस-पणदसगाइ विनेयं ॥५५॥ जोग्गं जई पमोत्तं रहस्समेयं न देयमन्नस्स । जेणाजोग्गविदिन्ने दोसोच्चिय होइ भणियं च ॥५६।। "आमे घडे निहित्तं जहा जलं तं घडं विणासेइ । इइ सिद्धंतरहस्सं अप्पाहारं विणासेई" ॥५७॥ तम्हा अपत्तावत्ता पत्ता परिणामगाइ परिणामि । पासत्थाइकुतित्थिय-गिहीण न सुयं पि निज्जेयं ॥५८।। परिणामगे विणीए गुरुभत्ते उज्जुए असढभावे । आणारुइम्मि भवभीरुगम्मि देज्जा पयत्तेणं ॥५९।। सुयसिंधुसुत्तिसूया धीवरपरिकम्मिया गुणविसाला । सुपया सुहक्खरतिही सच्छाया वित्तसारपिया ॥६०।।
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