Book Title: Anusandhan 2006 09 SrNo 37
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 13
________________ अनुसन्धान ३६ लज्जाए गारवेण व बहुस्सुयमएण वा वि दुच्चरियं । जे न कहिंति गुरूणं न हु ते आहार (आराह)गा हुंति ॥१२॥ छत्तीसगुणजुएण वि जम्हा एसा अवस्स दायव्वा । परसक्खिय च्चिय सया सुट्ट वि ववहारकुसलेणं ॥१३॥ दंसणनाणचरित्ता-यारा अट्ठट्ठभेयभिन्नाओ । बारसविहतवजुत्ता छत्तीसगुणा य इय हुंति ॥१४॥ वयछक्काई अट्ठारसेव आयारवाइ अद्वैव । पायच्छित्तं दसहा आयरियगुणा उ छत्तीसं ॥१५॥ तह पवयणमाया समणधम्म-वयछक्क-कायछक्काई । अट्ठ-दस-अट्ठारस-भेयओ गुणा हुँति छत्तीसं ॥१६।। आयारवमाईया अद्वैव य दसविहो य ठिइकप्पो । बारस तव छावासय छत्तीस गुणा इमे अहवा ॥१७॥ एवं जाणंतेण वि पायच्छित्तविहिमप्पणो सम्मं । तहवि य पागडतरयं आलोएव्वयं(यव्वयं) गुरुणा ॥१८॥ दारं ॥ लहुयाहाईजणणं अप्पपरनियत्ति अज्जवं सोही । दुक्करकरणं आणा, निस्सल्लत्तं च सोहिगुणा ॥१९॥ तो उद्धरंति गारव-रहिया मूलं पुणब्भवलयाणं । मिच्छादसणसल्लं मायासल्लं नियाणं च ॥२०॥दार।। वक्खेवविरहिएणं पसत्थदव्वाइ जोग सुदिसाए । विणएण मुज्जणा-सेवणाइ लोमेण छस्सवणा ॥२१॥ दव्वाइया उ चउरो एक्केक्क दुहा पसत्थ-अपसत्था । अपसत्थे वज्जेउं पसत्थएसुं च आलोए ॥२२॥ अमणुनधन्नरासी अमणुन्नदुमा य हुति दव्वम्मि । खेत्तम्मि भग्ग-ज्झामिय-घरऊसरपमुहठाणाणि ॥२३॥ काले दड्ढतिही तह अमावसा अट्टमी य नवमी य । छट्ठी य चउत्थी बारसी य दोण्ह पि पक्खाणं ॥२४॥ तह संझागय-रविगय-पमुक्खनक्खत्त असुहजोगो य । भावे य रागदोसा पमाय-मोहादओ अहवा ॥२५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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