Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 26
________________ १२ ॥ श्री अर्जुनपताका || दशावतारादाशार्हे, चंद्रार्कौ दृशि जन्मना । अष्टमीदोश्चतुषंच, नगभृत्त्वं७च नंदजे९ ॥ २२ ॥ अर्थ :- दाशार्हना-कृष्णना १० अवतार थया, चंद्र अने सूर्य बे छे [ अथवा जम्बूद्वीपमा २ सूर्य २ चंद्र छे ], तेनो जन्म-उदय ८ दिशिमां थाय छे [ आठे दिशिमां भिन्न भिन्न क्षेत्रनी अपेक्षाओ उदय प्रकाश करनार हो वाथी ८ दिशिमां उदय गणाय ], अथवा दिशाओ ८ होवाथी केवळ दिशाओ तथा अष्टमी तिथि, तथा [ दोश्चतु ं= ] चार भुजाओ कृष्णनी छे ते, तथा नगभृत्पणुं ओटले [ कृष्णे पर्वतने धारण कर्यो छे माटे कृष्णनुं गिरिधर पणुं, अने नंद नव थया छे माटे नंदपणं ॥ २२ ॥ विदुषट्कं पंचहृषी – केशत्वं च त्रिविक्रमे । एकादशीव्रतेष्टत्वं ध्येयं विंशतियंत्रतः ॥ २३ ॥ " १ अर्थ :- बिंदु छ छे, तेथी बिंदु पणुं, तथा इन्द्रियो पांच छे, तेथी इन्द्रियपणुं, [ अथवा कृष्ण हृषीक - पांच इन्द्रियोनो इश-पति होवाथी कृष्ण पोतेज हृषीकेश कहेवाय छे माटे हृषीकेशपणुं ओटले पांच इन्द्रियोनुं स्वामीपणुं ], अने त्रिविक्रम [ ३ पराक्रमवाळा ] पण कृष्णनूंज नाम छे, तेथी त्रिविक्रमपणुं, अने अकादशी व्रतनुं ईष्टपणुं ओ सर्व विंशतियंत्रथी ध्येय - भावना योग्य छे ॥ २३ ॥ पार्श्वदशभवाअष्ट - गणागणभृतस्तथा । युग्मं जयस्य विजय - स्तुर्यांबोधे ४ नगा ७फलः ॥ २४ ॥ विंशति यंत्रमां कृष्णनी भावना आ प्रमाणे १० ना अंकथी दश अवतार २ ना अंकथी चंद्र सूर्य ८ ना अंकथी आठ दिशि अथवा अष्टमी तिथि ४ ना अंकथी चार भुजा ७ ना अंकथी गिरिधारणता ९ ना अंकथी नवनंदपणुं ६ ना अंकधी बिंदुपणं ५ ना अंकथी पांच इन्द्रिय स्वामीपणुं ३ ना अंकथी त्रिविक्रमपणुं ११ ना अंकथी अकादशी व्रतेष्टपं Aho! Shrutgyanam

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