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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
पूर्व तिथिमां घटिकाओनी (घडीओनी ) अपेक्षाये तिथिच्छेदादि दोषना प्रयोजनवाळी छे [ अर्थात् क्षय तिथि जे तिथिमा आवी छे ते तिथिमां पण क्षयतिथिनो दोष उपजावनारी छे, अने तेथी यात्रादिने अंगे ते उदयतिथि पण क्षयतिथि तरीके मानीने ते ते कार्य थतुं नथी]. ते कारणथीज प्रत्ययनो लोप थवा छतां पण प्रत्ययनुं लक्षण सर्वथा जतुं नथी. तेथी अकस्थानमांज वदा देशोऽनलविधौ अ प्रमाणे वे परिभाषा युक्त छे. तथा अलंकारशास्त्रमा पण अकज शब्दथीज अनेक प्रकारना अर्थनो लाभ कह्यो छे, जेमके - अनुदरा कन्या [ कन्या उदर रहित छे ], अलोमा एडका (घेटां लोम रहित छे), इत्यादि वचनोमां विशिष्ट अर्थवाळी शक्ति होवाथी ते वचनो नो जूदो जूदो अर्थ थाय छे.
तथा वैदकशास्त्रीओ पण लंघन प्रसंगे लघु भोजनमा (अल्प अने हलका आहारमा) लंघन शब्दनोज व्यवहार करे छे, कारणके उत्सर्ग अने अपवाद ओ बन्ने अकंज प्रयोजनवाळा छे, अने अ प्रमाणे होवाथी ६ ना अंकस्थानमां ५ नो अंक स्थापवो ते अतिप्रसंग दोषवाळो नथी, कारण सदृशपणानो नियोगक-प्रयोजक होवाथी. ते आ प्रमाणेः-प्रथम एक अने बे संख्यातुं सरखाणुं छे, ते सदृश पणुं संख्याना आदिपणाथी जाणवं. [ त्यां १ नो अंक तो संख्यानी आदि सूप स्पष्ट छेज, अने] २ नो अंक संख्यानी आदिसूप केवी रीते १ कन्या उदरवाळी स्पष्ट देखावा छतां पण "उदर रहित" वचन केहवाय छे ते विशिष्ट शक्तिवाल्लं उदर अटले गर्भधारण शक्तिवाळू उदर नथी से विशिष्ट शक्तिरूप अर्थथीज. २ घेटां सर्वे वाळ युक्त [ लोम युक्त होवा छतां विशिष्ट लोम अटले वस्त्र बनवा योग्य उनवाळा वाळना अभावे " घेटां लोम रहित केहवाय छे. ओ रीते ओ बे वाक्योना दरकेना वे बे अर्थ थया. ३ जे साध्यसिध्धिने अर्थे उत्सर्ग छे, तेम अपवाद पण तेज साध्यासिध्धिने अर्थे होय
छे, अने जो तेम न होय तो तेवो अपवाद वास्तविक रीते अपवाद न गणाय, १६ नो अंक जे कार्यसाधक ( २० ना गणितनो) छे, तेम ५ नो अंक पण तेज कार्य साधक होवाथी ६ अने ५ ओ बन्ने अंक सदृश गण्या छे.
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