Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 81
________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ वळी अहिं बीजी रीते पण १२-८ अटले २०, ४-१६ अटले २०, १७-३ अटले २०, ९.-११ ओटले २०, अथवा १९-१ अटले २०, तथा ७-१३ अटले २०, तथा दशमां शून्य होवाथी अक न्यून करतां९थाय ते ९-११ अटले २०, तथा पांचमाथी अक बाद कर्ये ४, अने छ मांथी अक बाद कर्ये ५ आवे, जेथी [५+४=९] गणी ९-१०-१ अटले २०, तथा दशना स्थाने [ शून्य होवाथी अक बाद करतां नव गणीने ५-६-९ ओटले २०, अ प्रमाणे बे बे अंकस्थान मेळवीने गणाती बीजा प्रकारनी २० नी गणत्रीओ पण थाय छे ते यथा योग्य जाणवी. गंभीर अर्थना विषयवाळी होवाथी गंगाप्रवाह ग्रंथमां कहेला आ वीसना यंत्रमा ओ प्रमाणेज गणत्री गणवी. राजन्महेभै ८ निधिभि ९ स्त्रिलोक्यां । राज्यंभुजाभ्यां २ लभतेश्व ७ चकैः ॥ शिवं ११ दिशा १० माब्धि ४ जयारसढयां । ६-५ नरोत्रयंत्राद्विहरजिनानां ॥ अर्थः-विराजता अवा महान् हस्ति ओ वडे [ अहिं हस्ति अटले यंत्रपक्षे ८ वडे ] तथा निधि वडे (९ वडे ) त्रण=३ लोकने विष भुजाओ वडे [ २ वडे ] अने अश्व [ अटले ७ ना] समूहवडे शिव-११ दिशा-१० अने अब्धि-४ ना विजयवाळु रस-६ सहित अथवा रस-५ सहित अवा राज्यने वीसविहरमान जिनेश्वरोना आ विंशति यंत्रथी अहिं-आलोकमां मनुष्य प्राप्त करे छे. [ अर्थात् ८-९-३ । २-७-११। अने १०-४-६ अथवा ५ अत्रण पंक्तिगत अंकस्थानो रूप वीस विहरमानना विंशति यंत्र वडे मनुष्य आ लोकमां राज्य प्राप्त करे छे.] इति यंत्रे सर्वत्र एकक लेखने योजना ज्ञेया ॥ - अ प्रमाणे यंत्रमा सर्वत्र १ नो अंक स्थापवाथी ओ विंशति यंत्रनी योजना जाणवी. Aho ! Shrutgyanam

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