Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 100
________________ || श्री अर्जुनपताका || छे, अने तेनी नीचे क्षण - ६ अने चंद्र = १ ओटले १६ नो स्थपाय छे, तेनी नीचे चंद्र = १ पृथ्वी = १ ओटले ११ नो अंक स्थपाय छे, ओ प्रमाणे त्रण जाताना अंक स्थानो वडे [ १३-१६-१७ वडे ] त्रण कोठा ( पहेली अधः पंक्ति ऋण कोठा ) भरायला - स्थपायला छे. ॥ १७ ॥ ८४ युग्मैकधरणंसिद्धौ । व्यस्ताःसंख्याक्रमात्परे ॥ एकादशेभ्यः परतो । यथायुग्मैकमाहितम् ॥ १८ ॥ अर्थ:- तथा [ सिध्धमां = ] आठमा कोठामां युग्मैक ओटले १२ नो अंक स्थापवो, त्यारबाद आगळ आगळना [ वामावर्तना ] क्रमथी अकेक बुद्धिवाळा अंको स्थापवा. जेम ११ पछी ओक अधिक १२ नो अंक स्थाप्यो [ संबंध अग्रगाथामां ] ॥ १८ ॥ तथा षोडशतोवृद्धौ । निधौसप्तदशस्थिताः ॥ पूर्वे षोडशतोभूमी- विश्वांकस्यात्तदुत्तराः ॥ १९ ॥ अर्थः- तेम १६ थी ओक अधिक १७ नो अंक निधिमां ओटले नवमह कोठामां स्थापवो. तथा १६ थी पूर्वे १३ नो अंक छे, तेथी ते तेरना अंक थी ओक अधिक अंक [ संबंध अग्र गाथामां ] ॥ १९ ॥ चंद्राभोनिधयः१४षष्ट-स्थानस्थाःर वे निधेः ९ पदात् ॥ पूर्व पूर्वीकवृद्धत्वा दधोपिचंद्रवार्धयः ॥ २० ॥ अर्थः- चंद्रां भोनिधि - १४ थाय ते नवमा कोठाथी उपरना छट्टा कोठामां स्थापवो. वळी पूर्व पूर्वना [ १६ आदि ] अंकोथी ओकेक अधिक वृद्धिवाळा [ १७ आदि ] अंको होवाथी जेम छट्टा कोठामां चंद्रवाधि भेटले १४ नो अंक आव्यो छे, तेम छट्टाथी नीचेना नवमा कोठामां पण १७ नो अंक छे ने पण चंद्रवर्धिसंज्ञा वाळोज आवेलो छे. ॥ २० ॥ [ तेनुं कारण कहेवाय छे | तत्रांभोनिधिशद्वेन । सप्तसंख्याक्रमान्मताः ॥ निबन्नंतियतः प्राच्याश्चतुरः सप्तवांबुधीन् ॥ २१ ॥ Aho! Shrutgyanam

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