Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 110
________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ पुनः अ प्रमाणे अध:पंक्तिमां [ ओटले १३-१६-११ इत्यादिरीते ] ३-६-११ अटले २०॥८-१०-२ अटले २०॥९-४-७ अटले २०॥ पुनः बेविदिशि पंक्तिओमां ३-१०७ अटले २० ॥९.१०-१-२० ॥ओ प्रमाणे आठ प्रकारे अकना अंक रहित * गणत्री करी अहिं विदिशानी पंक्तिमा ११ ना स्थाने जे बे अकडा छे तेनो गुणाकार करतां 'ओक ओके एक ' ओ प्रमाणे लोकमां अक वडे [कोईपण रकमने] गुणवाथी जवाब तेनो तेज आवे छे, माटे शास्त्रमा १ ना अंकने संख्यानी विवक्षा नथी अटले १ ने संख्यामां गण्यो नथी, कारणके अंक छे ते पोते वस्तु स्वरूप अटले स्वाभाविक छे, कारण के स्वात्मलाभमां (अटले अकना ज्ञानमां) परनी [बीजी] वस्तुनी अपेक्षा नथी होती. ते कारणथी सिद्धान्तनुं पण वचन छे के लहु सांखिजं दुचिय' लघु संख्यात [अटले ओछामा ओछी संख्या ] निश्चय बेज छे. ॥ भू विश्वादि विंशति यंत्रनी २० गति. ॥ अर्थ:-हवे भू विश्व इत्यादि पदोवाळा पद्मावती यंत्रनी वीशनी गणत्री २० रीते थाय छे, ते वीस गतिओ श्रीगुरुना उपदेशथी आ प्रमाणे जाणवी. ॥४३॥ अर्थ:- अहिं १३-१८-१९ ओ पहेली पंक्तिमा ११ रीति आ प्रमाणे३-८-९ अटले २०–त्रण अंकथी १-१८-१ , २०३-७-१-९ , २०-अ चार अंकथी ( अहिं १ न्यून ८ अटले ७ छे.) १३-१७ , २०--अमां १ न्यून करवानी रीति बाण षण नव ओ १-१९ , २०--सूत्रथी बाण=५ न्यून ६ अटले १४ अ प्रमाणे अकाधिकपणामां पण अज सूत्र जाणवू अने १ उमेरवानी तथा १ बाद करवानी विधी ज्योतिष शास्त्रादिकमां प्रसिद्ध छे. * अहं १० अने ११ ना अंकनो अकडो प्रक्षिप्त नथी पण स्वाभाविक छे माटे ते गणत्रीमा लीधो छे. अने '२-५३ इत्यादिमांना अकडो प्रक्षिप्त होवाथी ते गणत्रीमा लीधा नथी. कारणके र थी ११ सुधीना स्वाभाविक अंक गणवा. Aho I Shrutgyanam

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