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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
५ विचारी ओ तो १५-४-१ अटले २० थाय ॥५-१४-१ अटले २० ॥थाय. अने १-१-१-१७ अटले पण २० थाय, अमांत्रण अकडाने बदले चार अकठा गणवाथी अक अकडो अधिक गण्यो तेनुं कारणके ओगणीसना कोठामा १९ अने १५ ओ बन्ने अंक स्थापना थाय छे ते कारणथी ओ अकज कोठाना बे अकडा गण्या. वळी ओगणीसना कोठामा १९ अने १५ नी अंकस्थापना कराय छे ते पंदरमा ५ ने अंकने ६ सदृश्य गणी त्यारे १६ नो पण अंक आवे तेथी १६-३-१ अटले २० / अहि चौदमांना चार ने ओक न्यून करीत्रण गणेला छे] पुनः ओ ६ ने अक न्यून करी ५ गणी) तो ५-१४-१ अटले २० थाय. तथा छ ने ओक अधिक करी ७ गणीओ [सत्तरमांना] सातने अंक अधिक करी ८ गणी त्यारे ७-५-८ अटले २० थाय ओ प्रमाणे त्रीजी उर्ध्व पंक्तिमां त्रण रीते [अने न्यूनाधिक पद्धति सहित ९ रीते | वीसनी योजना दर्शावी.
विदिशिपंक्तिमा ३-१०-७ अटले २०, अने बीजी विदिशिमां ९-१०-१ अटले २० थाय छे. अहिं पण ११ ना स्थाने १ गणवाना कारणसम्प्रधान पूर्वे कहेली रीते विचारवं. अमा मूळ अंक १ ज छे ते १ मां मध्य कोठामा रहेला १० ना अनुरोधथी [अनुसरणथी] ११ थयेला छे..
ओ प्रमाणे जे विंशति यंत्रमा नव योजना (नवगति) आयतगतिवाळी, नव योजना उर्ध्वगतिवाळी अने बे योजना विदिशिगतिवाळी थवाथी वीस रीते २०-२० थाय छे ॥ इति विंशति गति भेदाः॥
अमां १३-७ अटले २० ओ योजना गति अदोलान सिंहासन यंत्रादि मध्य पंक्तिमां बे कोठाना अंक मेळववाथी तेटलो अंक [ २० नो अंक] सिद्ध थाय छे, अने ते अनुसारे तेवी रीते १-३-१-१५ इत्यादि योजनाओ कोठाना [त्रण कोठाना ] चार अंक मेळववाथी थाय छे, अने ते कमळाकृतिवाळा विंशति यंत्रमा चार कोठाना चार अंक मेळववाथी अनुस्वारे शेष योजनाओ पण जाणवी. कारणके सूत्र [भू विश्व क्षण इत्यादि पदवाळु काव्य ] गंभीर अर्थवाळु होवाथी अने यंत्रोनी गतिओ
१ अदोलन अने सिंहासन अ यंत्रना भेद विशेष संभवे छे.
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