Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 114
________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ।। गति वैचित्र्यमन्यत्र । यंत्रे पंचदशात्मके ॥ दृश्यते लोक बोधाय । तदिहापि निदर्यत ॥४७॥ अर्थः-वळी बीजा प्रकारना पंदरीया यंत्रमां गतिने जे विचित्रता देखाय छे ते विचित्रगति अहिं पण लोकमां ज्ञान थवाने अर्थे दर्शावाय छे ॥४७॥ 'अत्रषड् द्विसप्तयंत्रे कोणगतिः ७-३-५ द्वितीय कोणगतौ ६-३ मेलने नव ब्यावृत्त्य पुनः षड् गणने १५ भवंति द्वितीये ४-१०-१ अस्मिन् यंत्रे सिंहासनादि यंत्रवत् मध्य पंक्तिकोश द्वयादपि पंचदश पूरणात् यंत्राणां गति वैचित्र्यदर्शनादेव विंशतियंत्रं श्रद्धेय मिति भावः एकत्र कोण गतौ न्युनाधिकत्वे प्यदोषात् अर्थः-अहिं ६-२-७ ओ अंक स्थापनावाळा पंदरीया यंत्रमा विदिशागति ७-३-५ अटले १५ अने बीजी विदिशागतिमां ६-३ अटले ९, अने पुनः पाछावाळीने ६ गणतां [६-३-६ अटले ] १५ थाय छे. वळी बीजा प्रकारना पंदरीया यंत्रमा ४-१०-१ | ६ | २ | " अटले १५ पंदरीया यंत्रमा सिंहासनादि यंत्रनी पेठे मध्यपंक्तिमां [ अटले बीजी उर्ध्व पंक्तिमां] बे कोठाना अंकथी [१०-५ थी ] पण १५ नो अंक पूर्ण थाय छे, तेथी अप्रमाणे यंत्रोनी गति विचित्र देखीने २० नो यंत्र पण विचित्र गतिवाळो होय अवी श्रद्धा करवी. ओ तात्पर्य १५ १५ ५ 出出图 १५ १५ Aho I Shrutgyanam

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