Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 88
________________ ॥ श्री अर्जुनपताका ॥ करतां ९ आवे ते गणवा. अथवा अक न्यून छ ओटले ५ अने अक न्यून पांच अटले ४ प्रमाणनो अंक आवो, ॥ ७ ॥ ८ ॥ ७२ योगे चतुर्णा पंचानां - नववागो ९ व्ज १ धारणात् ॥ एवं विंशतयोविंश - प्रमाणाइह जज्ञिरे ॥ ९ ॥. अर्थ :- ओ रीते पण ४ अने ५ ना योगे ९ नो अंक जाणवो. ते साधे कनो अंक स्थापवाथी १९ थाय, ओ रीते वीस प्रकारनी वीसनी गणत्री अहिं थई ॥ ९ ॥ · देव्या पद्मावत्या भगवत्या स्वप्नकथित यंत्रस्य ॥ संवादार्थं विवृतं वाचक मेघादिविजयेन ॥ १० ॥ अर्थः- भगवती पद्मावती देवीओ स्वानमां कहेला आ विंशति यंत्रना संवादने अर्थे [ गणिती रीति प्रगट करवाने अर्थे ] श्रीमेघविजयजी उपाध्याये आ यत्रनुं विवरण कर्यु. ॥ १० ॥ भवंति नानायंत्राणां गतय स्तेन विंशतेः ॥ यंत्रे शठकृताक्षेप विक्षेपायोद्यमोप्यसौ ॥ ११ ॥ अर्थ:- वळी विंशति यंत्रथी वीजा पण अनेक प्रकारना यंत्रोनी गतिओ [ रीतिओ ] प्राप्त थाय छे. ते कारणथी, तेमज आ विंशति यंत्रमां मूर्खज नोवडे करता आक्षेपोने दूर करवा माटे पण मारो आ उद्यम छे ओम जाणवुं ॥ ११ ॥ इति विजययंत्राष्टम गत्यायवनमत विंशति यंत्रप्रतिष्ठा ॥ अ प्रमाणे विजययंत्रनी आठमी गतिवडे यवनना मते विंशति यंत्रनी स्थापना दर्शावी. ॥ इति. ॥ Aho! Shrutgyanam

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