Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 63
________________ ॥ श्रीअर्जुनपताका ॥ अर्थः-महादेव अगिआर होवाथी ११ नो अंक, विजयकारी अवां व्रण नेत्रवाळा होवाथी ३ नो अंक आवे छे. ओ प्रमाणे अर्जुनने पण अश्वर्या दिकमां जय आपनार आ यंत्र छे, माटे विंशतियंत्र करणमां ओ ओ वस्तुओ ध्येय-ध्यान करवा योग्य छे, तथा गमे तेटली दूर गयेली उकृष्ट लक्ष्मी स्त्री तुल्य अर्धांगना थाय छे, अने घरमां स्थिर थई रहे छे. वळी ओ यंत्रथी बहुधा (विशेषे करीने) वसुधाधीश-राजा पण पोताने वश थाय छे ॥ २ ॥ इति विंशति यंत्रे महादेवावतरणम् ॥ वीरेवतारो दशमद्युलोकात् । व्रतं दशम्यां वरकेवलाप्तिः । द्वैमातुरे धर्मयुग तथाष्ट--वर्षे महावीर पद प्रतिष्टा ॥३॥ अर्थ:-श्री कीरप्रभुनु अवतरण [ च्यवन ! दशमा देवलोकथी थयु छे, वळी दशनीने दिवसे व्रतप्राप्ति तथा केवळ ज्ञाननी प्राप्ति थई छे, ते ध्येयथी १० नो अंक विचारवो. श्री वीरप्रभुनी [देवानंदा अने त्रिशला ओ] बे माता छ, अने [ साधु धर्म तथा आवकधर्म ओ] बे धर्म उपदेश्य छे ते ध्येयी २ नो अंक विचारवो. आठ वर्षनी वय थये [बालक्रीडा प्रसंगे वळणी परीक्षा करनारा देवे] " महावीर” अर्बु नाम स्थाप्युं ते ध्येयथी ८ नो अंक विचारवो ॥३॥ चतुर्मुखांगत्वमृषिप्रमाण-करांगता साधुगणाः नवापि ॥ । पाण्मासिकी पंचदिनोनतप्ति-व्रते शराषट् त्रितयं चरित्रे ॥४॥ अर्थः-देशना समये समवसरणमां चार मुख थाय छे, [ ऋषिप्रमाण= ] ७ हाथर्नु शरीर प्रमाण छे, साधुना नवगण छे, पांच दिवस न्यून छ मासनो तप कर्यो छे, पांच अथवा छ महाव्रतवाळा छे. अने दर्शनज्ञान चरित्ररूप त्रण रत्नवाला छे, ओ कारणथी यंत्रमा ४-७-९-६ वा ५-३ अ अंको ते ते खरूपे ध्येय छे.॥४॥ षष्ठे भवे पोट्टेलता पि पंचमे । जाता स्तथैकादशतद्गणेश्वराः । विशांबुराश्यायुपिपुर्वजन्मनि । श्रीविंशयंत्रो दितिभावनश्रियम् ॥५॥ Aho I Shrutgyanam

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