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॥ श्री अर्जुनपताका ॥
वळ भावना बडे कार्यसिद्धि नथी ओम अकान्त नथी. कारण के— पानीयमप्यमृतमित्यनुचिन्त्यमानं किं नाम नो विषविकारमपाकरोति? | अ प्रमाणे प्राचीन मुनीओनुं वचन छे. तथा विष भक्षण तथा अशुद्ध नाणा विगेरेमां तो मूढपणानो दोष छे. ( अने अहिं तो ) सहकारी बैरुप्यंनी अन्तर्भावना मात्रथी ते ते कार्य थाय छे, ओम जाणवुं. बळी बिजी बात से छे के—यंत्रोनी विचित्रगति छे माटे भेटलं जाणीने पण संतोष मानवो, जेम कमलाआकृतिबाळा विंशति यंत्रमां चार गति छे [ भेटले चार रीतिओ २० नो अंक प्राप्त थाय छे, ओ आ प्रमाणे - ] त्रिस्थानका दिग्गति-विदिग्गति परिधिसव्य-परिधिसंव्येतर तथा चार स्थानवाळा बारना यंत्रमां कोई गति त्रण गृहवडे अने कोई गति बेज गृहवडे थाय छे, इत्यादि विस्तार गंगाप्रवाह ग्रंथथी जाणवो.
अ प्रमाणे दशनी सावर्ण्यतावाळा दशे अॅकनुं पण सावर्ण्य [ सदृशपशुं ] जाणवुं, अने ते कारणभीज चूडामणि शास्त्रमां अक्षरो मां पण अंकन्यास कहेलो छे, कारण के लिपिभेदवाळा अंकोवडेज वर्ण अक्षरांनी भावना करेली होवाथी. अने वस्तुतः तो यंत्रोनी गतिज विचित्र
१ दिशिपंक्तिगत ३ खानां गणवाथी त्रिस्थानिकागति उर्ध्वाधः रीते वे प्रकारनी छे,
पहेली दिगगति, वे विदिशिपंक्ति गणनाथी वे प्रकारनी विदिग्गति. घेरावामां पूर्वी चार अंकोनो सर्वाळो करवो ते सव्यपरिधिगति, अने ईशानांकथी चार अंक सुधीनो सर्वाळा करतो ते सव्येतर परिधिगति ( अर्थात् जमणो घेरावो अने डाव घेराव गणवाथी ने परिधिगति थई ).
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३ १०
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आ कमलाकृतिमां ३-१०- ७ तथा ६-१०-४ अ दिग्गतिक्ष २० थाय छे.
९-१०-१ तथा २-१०-८ अ वे विदिग्गतिथी २० थाय छे. ४-१--- ७-८ अ जमणा परिधिमा २० थाय छे.
अने २-३-९-६ अ डावा परिधिमा २० थाय छे.
२ जे १-२ तथा ३-४ अ वे बे अंकोनी सदृशता कही ते रीते १ थी १० सुधीना दशे अंकन पण परस्पर सदृशता दशपणानी समानता वडे जाणवी.
३ जेम अर्हन्मां अकारथी ८ र कारथी २ ह् कारथी १० ( इति २० ) इत्यादि रीते.
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