________________
॥ श्रीअर्जुनपताका ||
35
छे, तेम अहिं पण ६ ना अंकमा ५ नी विवक्षा करवी. वळी अनुस्वारमां सिद्धान्तकौमुदिये स्वरसंज्ञा मानी छे, अने हेमव्याकरणना मते " क आदि व्यंजनना अश्रयथी व्यंजनपणं मानलं छे. जेमके
३४
भुवणानि निबध्नीयात् त्रीणि सप्त चतुर्दश । चतस्रः कीर्त्तयेद्वाष्टौ दशवा ककुभः क्वचित् ॥ १ ॥
अर्थ :- भुवनो कोई स्थाने त्रण ( = त्रण भुवन) कह्यां छे, कोई स्थाने सात भुवन कह्यां छे. अने कोई स्थाने ( कोई शास्त्रमां ) चौद भुवन पण कह्यां छे. तेमज दिशाओना संबंधमां पण कोई ग्रंथमां चार दिशाओ गणी छे, कोई ग्रंथमां ६ दिशाओ गणी छे, अने कोई ग्रंथमां दशदिशाओ पण गणी छे ॥ १ ॥
तथा समुद्र संज्ञाथी समुद्रोने कोई ग्रथमां चार गण्या छे, अने कोई ग्रंथमां सात समुद्र पण गण्या छे तेमज स्वरोना संबंधमां पण कोई स्थाने त्रण अथवा पांच अथवा सात अथवा चौद अथवा नव पण स्वरो पण गण्या छे, अ प्रमाणे सर्वस्थाने सर्व ग्रंथोमां जे स्थाने जेवी व्याख्या घटे ते स्थाने तेवी व्याख्या सर्व पंडितोने सम्मत होय छे, तेम अहिं पण सदृश असदृशना करणथी ( ५ तथा ६ ना अंकमां अकत्व अनेकत्वनी भावनाथी ) सदृश पणा वडे [ पांचनो अंक पण ६ सदृश छे, अथवा ६ नो अंक पण ५ सदृश छे अथवा लुप्त थयेलो ५ नो अंक पण कोई वखते स्वकार्य कर्ता छे ओम विचारीने ] आ विंशति आदि सर्वे यंत्रो विसंवाद रहित जाणवा.
अथवा जेम छंदः शास्त्रमां लघु अक्षर पण पादने - चरणने (श्लोकना पहला चरणने ) पर्यन्ते होय तो गुरु गणाय छे, अने अहीदि गणमां संयोगपर वडे [ अग्रे आवेला संयुक्ताक्षर-जोडाक्षर वडे गुरु अक्षर पण लघु गणाय छे, कारण के शास्त्र प्रवृत्ति अनिष्ट अर्थवाळी होती नथी अ न्याय छे, माटे तेवी रीते अहिं यंत्रमां पण ते ते अंकोनी सदृशता विचारीनेज निर्वाह करवो [ = अविसंवाद पणुं जाणवु, कारण के सतोगतिश्चिंतनीया [ जे सत् छे तेनीज गति विचारवी ]. अ न्याय छे.
Aho! Shrutgyanam