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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
अने चारपणुं सहचारी छे, त्रिब्रह्मवर्णस्त्रयः- इति त्रिपुरास्तवमा (त्रिपुरा देवीना स्तोत्रमा) कयुं छे. अने चार वर्ण [क्षत्रियादि ] तो प्रसिद्धज छे. तथा [ पुरुषार्थमां पण त्रण तथा चारनुं सहचारीपणुं छे तेमां] धर्म अर्थ काम त्रिवर्ग रूप त्रण पुरुषार्थ, अने मोक्षसहित चार पुरुषार्थ इति कोश वचनात्. ___ अ प्रमाणे ५ तथा ६ ना अंकनुं अकपणुं पण द्रष्टान्त सहित जाणवू, ते आ प्रमाणे-कंईकस्थाने रस पांच कहेवाय छे, तेमां लवणरसभेदनी विवक्षाये छ रस पण कहेला छे, ओ प्रमाणे इन्द्रियो पांच छे, पण ते साथे तेना विषयोनो १ भेद गणतां छ इन्द्रियो पण गणाय छे, प्रमाणे बे संख्या छ. का छे के-पंचेन्द्रियाणि त्रिविधं बलंच [ पांच इन्द्रियो अने मन वचन काय बल ओत्रण बल], षडिन्द्रियाणि षड्विषया-[छ इन्द्रियो ते छ प्रकारना विषय, अर्थात् पांच इन्द्रिय अने छट्ठो विषय ', इति केशवः अने कारणथीज हिन्दुमतमा [हिन्दी लिपीमां] पांचना अंकनी अने छ ना अंकनी बन्नेनी आकृति लगभग ओक सरखी छे. वळी वक्रा पंचम षष्टेंके [ = पांचमां अने छट्टा अंकमां वक्र आकृति छे ] अम कडं पण छे. माटे ५ अने ६ ओ बे अंकने सदृशपणुं छे- इति तात्पर्यः]
हवे ७ अने ८ ओ बे अंकनुं अकत्व-सादृश्य दर्शावाय छे-सत्तट्ट पयाइं अणुगच्छई तथा सत्तट्ट भवग्गहोई तथा सत्तपुढवीओ पन्नात्ताओ
१ अ पाठमां त्रिविधं बलंच अटलो पाठ गाथाना संबंध मात्रथी कह्यो छे, जेथी अहिं
ओ त्रण बलनी गणत्री करवी नहीं. २ हिंदी लीपिमां ६ छगडानी आकृति ६ ओवी छे, अने यवनलीपिमां ५ अथवा ६
अवी छे. ३ [ गुरुजता होय ते वखते शिष्य ] ७-८ पगलां गुरुनी पाछळ जाय. ४ ( पंचेन्द्रिय संज्ञि तिर्थच तथा संज्ञि मनुष्य वारंवार पोताना भवमा उत्पन्न थाय तो उकृष्टी ) सात अथवा आठ भव सुधी उत्पन्न थाय, त्यारवाद अवश्य अन्य भवमांज
उत्पन्न थाय. ५ रत्नप्रभा विगेरे सात पृथ्वीओ ( अनुक्रमे नीचे नीचे ) कहेली छे.
Aho I Shrutgyanam