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॥ श्रीअर्जुनपताका ॥
दिगंक ७-६.३.४ योगे नवमीगतिःस्याद्विदिग्गतांक ४.२-६-८ दशमी स्फुटैव ॥ आद्यालिकोष्टद्वितये ४.७ पिचाये।
युक्तेतृतीयालिमकोष्टयुग्मे ३-६ ॥४॥ अर्थः-तथा यंत्रमा दिशिने विषे स्थापेला ७-६-३-४ अंकोने मेळवतां पण २० थाय ते नवमी गति-रीति छे ॥ इति नवमी गति ॥ तेमज विदिशिमां रहेला अंको ४-२-६-८ ने मेळवतां पण २० थाय, ओदशमी गति तो स्पष्टज छे ॥ इति दशमी गति ॥ तेमज पहेली पंक्तिना पहेला बे कोठामां-खानामा रहेला ४-७ ओ बे ओकमां त्रीजी पंक्तिना छेहेला बे कोठामा रहेला ३-६ ओबे अंक मेळवीओ तो पण २० थाय. ॥ इति एकादशी गति ॥४॥
एकादशीयं गतिरित्थमुक्ता। तथाद्य पंक्तावचले ७ भुजे २ च ॥ युक्त तृतीयालिमुखाष्ट ८ रामैः ३।
स्याद्वादशीयंगतिरकै १२ तुल्या ॥५॥ अर्थः- प्रमाणे ओ अगिआरमी गति कही, तथा पहेली पंक्तिमा छेल्ला ये अंक अचल ७ तथा भुज-२ छे, ते बेने त्रीजी पंक्तिना पहेला अष्ट-८ अने राम-३ ओ बे अंकमां युक्त करीये तो ते २० ना अंकनी [ अर्क-तुल्य सूर्य जेटली अटले ] बारमी गति थई इति द्वादशी गतिः॥५॥
द्विकेन २ तर्केण ६ कृतेन ४ सिध्या ८। त्रयोदशी सांग ६ रसैः ६ समुद्रः ४ ॥ प्रमाण ४ युक्तैश्च चतुर्दशीसा।
जातागति विंशतिसंख्ययैव ॥ ६॥ अर्थ:-तथा द्वि+=२ तर्क-६ कृत-४ सिद्धि-८ ओ [अर्थात् अग्नि दक्षिणना २-६ मा उत्तर वायव्यना ४-८ | मेळवतां जे २० थाय ते तेरमी गति
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