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॥ श्रीअर्जुनपत्राका ॥
अर्थ:-बुद्धिना ८ गुण वाळो गुरु छे, परंतु वक्रपणाथी [गुरुवक्री होवाथी] ओक न्यून करतां ७ रह्या, ते साथ अंशमां वर्ततो गुरु मध्यम गणाय छे, [ अर्थात् गुरु कर्कराशिनो ५ अंश सुधी वर्ततो होय त्यारे अति उच्च गणाय छे, अने ते उपरान्त छ सात आदि अंशमां वर्ततो मध्यम गणाय छे ], तेमज सिद्ध छायावडे प्राप्त थयेला ७ ना अंकथी गुरुस्वामी विंशतियंत्रमा कह्यो छे ॥ १४ ॥
दशास्यैकोनविंशाद्वाऽ - के १२ भागेशेषसप्तकात् ।
वागिन्द्रियंसप्तमंत-स्वामी सप्तांकवान् गुरुः ॥ १५ ॥ अर्थः-वळी ओ गुरुनी दशा १९ वर्षनी छे, तेने अर्क-सूर्य अटले बार वडे भागतां शेष ७ रहेवाथी, तेमज वचनेन्द्रिय [१० कर्मेन्द्रिय ज्ञानेन्द्रियमां ] वचनेन्द्रिय सातम्रो छे, नेनो स्वामी गुरु थे, माटे गुरु विंशतियंत्रमां.५ ना अंकवाळो छे. ॥ १५ ॥
अश्विन्यांदशमपत्रं, तजातत्त्वात्कवेर्दश ।
नववकैकहीनत्वे, नवाह पश्चिमास्ततः ॥ १६ ॥ अर्थः-अश्विनी नक्षत्रथी दशमुं पैत्र [ मघा ] नक्षत्र छे, ते दशमा पैत्र नक्षत्रमा जन्म थवाथी अने वकाहोवाथी अक अंक न्यून करतां शुक्रनो विंशतियंत्रमा,९ नो अंक छे. तेमज पश्चिम दिशामांना दिवस वर्ततो होवाथी नव अंक शुक्रना स्थापना करेला छे ॥ १६ ॥
दशैकविंशत्यब्दा - स्यादोंने नवशेषतः।
सिद्धसार्धाष्टप्रादेषु, राशिमध्यफलातम् ॥ १७ ॥ अर्थः-तथा शुक्रनी दशा अकवीस वर्षनी छे, तेने सूर्यना बार. अंकवडे बाद करता ( अथवा भागतां)९ शेष रहेवाथी, तथा पोतानी राशिमां ८॥ पादोमां वर्ततो,शुक्र मध्यफळवाळो होवाथी (साढा आठ ते नवमानो अर्ध अंक छे माटे) शुक्रनो ९ नो अंक विंशतियंत्रमा स्थपाय छे ॥१७॥
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