Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 13
________________ प्रस्तावना. प्रिय विज्ञ पाठक वृन्द.: लिखते हुये मुझे अत्यानन्द होता है की, श्री. महाबीर ग्रंथमालाके यह अंक सजधजके साथ लुप्त प्रायः विद्याओंका और औषधियोंका बडीही खोजके और परिश्रमके साथ पुनः प्रचार किया जा रहा है. यद्यपि इस बीसमीशदीमें अधिकांश महानुभावोंका इतना विश्वास इन विद्यापर नहीं रहा है और वे इस विषयमें अनेक प्रकारकी शंकाएँ किया करते है लेकिन इस साम्प्रतिक कालमेंभी यह विद्याएँ पहिले जितनीही सिद्ध और कार्यकारिणी हो सकती है वशतेकि यथाविधी दृढ विश्वासपूर्वक इनकी साधना की जावे । क्योंकि “ विश्वासों फलदायकः ” इस न्यायानुसार विश्वासहीसे फलकी सिद्धि होती हैं. उपेक्षा करना ठीक नहीं हो सकता । अत इस विषयमें अब जादा न लिखकर आपके समक्ष जो लिखनेका है वही लिखा जा रहा है. । सिद्धषिसाकल्प:-यह कल्प वही है की, जो श्रीपद्मावती देवीने महामहोपाध्या श्रीमेघविजयजी गणिको स्वप्नमें बताया था. देव्यापद्मावत्या स्वाकथित यंत्रस्थाप्राहुबाहुबल्याद्यासुनयानयकोविदाः उसीको हमने ४५० यंत्र प्रति कृती ओर करीबन ३५०० श्लोक मूल भाषांतरके साथ पाठकोंके सामने उपस्थित किया है उसके अंदर 'अह' शब्दसे बिसा किस तरह बनता है वह बडीही सरल युक्ति योंसे समजाया गया है. इस ग्रंथको देखकर पाठकोंकी यह शंका विनष्ट होती है की बिसा यंत्र नव कोठेमें भी बनता है. इस ग्रंथमे तिखुणा चोखुणा पद्माकार पचासोंही प्रकारके बिसा सिद्ध करके दिखला दिया है. लौकीक कहावत है की, "जिसके घर विशा। उसका क्या करेगा जगदीशा ॥ यह ग्रंथ बहोत उपादेय वा संग्राहणीय है. यह यंत्र राजदरबारमें विजय दिलाता है, वसीकरणमें इसका सानि दुसरा नहीं रखता. व्यापारमें लाभ दिलाने में इसके ढंगका यह एकही है, आरोग्यादी प्राप्तिमें अपने जोडका दुसरा नहीं रखता. बंदीखानेसे छुटकारा दिलानेमे यह अद्वितीय है, ओर दुखीयोंका दुखको यह बीसा क्षणभरमें कापुर कर देता है. इत्यादि-- नोट-आजकल दुनियामे यंत्रोकी हरिफाई बहुतसी चलती है. परंतु हमारे भाईयोंको उसीका कुछ भी लाभ नहीं मिल सकता है. इस लिये उनसे हमारा निवेदन है की इस ग्रंथको संग्रह करे. ताकी इस ग्रंथके आधारसे कोईभी यंत्रकी हरिफाई करनेमें ठीक पडेगा. यह ग्रंथ यंत्रोकी हरिफाईमे रामबाण है. ( मेघविजयजी के हस्तलिखित ग्रंथोकी यादी ओर उनके समयका वर्णन अर्हद् गीताग्रंथके प्रस्तावनामें देख लेवें. ) गाहाजुअल स्तुतिः -कर्ता अंचलगच्छीय श्रीपादलिप्तसूरीश्वरजी टीकाकार पूण्यसागर वाचकने किया है. दुसरी सोपज्ञआम्नाय सहित है आम्नाय बहुत सरल है. ईसमें बहुतसी Aho! Shrutgyanam

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