Book Title: Anubhutsiddh Visa Yantra
Author(s): Meghvijay
Publisher: Mahavir Granthmala

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Page 12
________________ मुनिरत्न श्रीमंगलसागरजीका अभिप्राय. श्रीमहावीर ग्रंथमाला-एस्. के. कोटेचा धुलीया, ता. १।६।३७ धर्मलाभ के साथ विदीत होकी मेरे जीवनमे आपके ग्रंथमालाकी विचित्र वस्तुएं एसी कही देखनेमे न आई. आपका सिद्ध बिशा आदि कल्पका निरीक्षण किया सिद्ध विशा कल्प जो देवी पद्मावतीने महामहोपाध्याय श्रीमेघविजयजी गणिको स्वप्नमे बतायाथा वह बिशा यंत्र देखनेसेही बनता है यहवात आपके ग्रंथ परसेही साबित होती है.. गाहाजुअल स्तुति सोपज्ञ आम्नाय यह बहुत अलौकीक है. ईसे जो कोइ शौकीन ईसके अनुसार क्रिया करेगा. व दरिद्रता रुप दावानलमे कभी न जलेगा । आपके पासकी जो मुलप्रती है जिसके टीकाकार जिनप्रभसूरि है बह बहुतही अपूर्व है. श्रीजिनदत्तसूरिश्वरजीका बनाया हुवा बावन तोला पावरती कल्प नाम जैसा गुण है. चंद्रकल्पः-जो जगत सेटजीने स्वयं अनुभव किया है. तब इस कल्पका क्या लिखना. उग्रवीरः-यहकल्प हमने वर्णन सुणाथा । परंतु नजरसे देखनेमे नही आयाथा । आजही यह कप देखा है. यह बहोतही उत्तम है । विशेशमे बिशा यंत्रके साथमे आपने ४५३ यंत्राकृती दिया इससे सोनेमे सुगंध जैसा हुवा है. बहुत क्या लिखना. - खरतरगच्छीय उपाध्यायजी श्रीसुखसागरजी महाराजके शिष्य मुनि मंगलसागरजी. नोट:-हमारे ग्रंथमालाकी प्रत्येक पुस्तक पुराणे पुस्तकोंके आधारसे अक्षरशा नकल करके छपाई जाती है. अगर पाठकोंको भाषामें गलती मालम होतो सुधारकर ओर बिचार करके पढे कारण भाषा पुराणी हानेसे भाषाका गौरव नष्ट न हो जाय इसलिये भाषामे परिवर्तन नहीं किया जैसाथा वैसाही छपाया गया है. छपानेका कार्य हमारा है और पढनेका का कार्य पाठकोका है. Aho ! Shrutgyanam

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