Book Title: Anjana Pavananjaynatakam
Author(s): Hastimall Chakravarti Kavi, Rameshchandra Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 5
________________ है। सन् 1133 में विष्णुवर्द्धन राजा को पत्नी शान्तला ने समाधिमरण किया था, उस समय प्रभेन्दु या प्रभाचन्द्र उपस्थित थे । हस्तिमल्ल ने उन्हें योगिराट् कहा है । उस समय वे वृद्ध हो गए होंगे। इस प्रकार हस्तिमल्ल का जन्म लगभग 1160 ई. होना चाहिए । अय्यपा नामक विद्वान ने जो प्रतिष्ठा पाठ शक संवत् 1241 (ई. 1320 ) में लिखा था, उसमें उन्होंने आरम्भिक प्रशस्ति में पं. आशावर और हस्तिमल्ल का उल्लेख किया है। इस प्रकार हस्तिमल्ल आशाधर के समकालीन माने जा सकते हैं। पं. आशाधर का अन्तिम ग्रन्थ अनगार धर्मामृत है, जो संवत् 1300 (1244 ई.) में समाप्त हुआ था । हस्तिमल का जन्म स्थान ब्रह्मसूरि के प्रतिष्ठा सारोद्धार को प्रशस्ति से तीर्थहल्लि का परिचय दिया गया है। इसके आसपास हस्तिमल्ल का निवास होना चाहिए। यह स्थान हुम्मच हो सकता है । प्रशस्ति के में गुडिपतन द्वीप के नाम से इस स्थान का उल्लेख हुआ है । यहाँ वृषभेश्वर मन्दिर था । हुम्मच में बीर सान्तर या सान्तर वंशी राजाओं द्वारा 17वीं शती के अनेक मन्दिर हैं। उनमें जैन मठ के समीप का आदिनाथ (वृषभेश्वर ) का मन्दिर विशेष उल्लेखनीय है । सान्तर अंशी जिनदत्त के पुत्र तोलपुरुष विक्रम सान्तर हुम्मच मेँ एक वसदि बनवायी थी, उसमें भगवान् बाहुबलि की मूर्ति प्रतिष्ठित करायी थी, उस वसदि का नाम गुड्डु ( या गुडइ) था । = अंजना पवनञ्जय नाटक को प्रशस्ति में लिखा गया है कि हस्तिमल्ल कर्नाटक की भूमि में संतरगम में रहते थे और वह सन्तरगम जैनागारों से युक्त था । वंश परम्परा I हस्तिमल्ल गोविन्द के पुत्र थे। गोविन्द का उल्लेख उन्होंने चारों नाटकों की प्रस्तावना में किया है । उनको विद्वत्ता का सूचक भट्टार, भट्टारक, भट्ट या स्वामी शब्द नाम के पूर्व जुड़ा हुआ है । गोविन्द प्रारम्भ में जैन नहीं थे। ये समन्तभद्राचार्य के देवागम स्तोत्र को सुनकर जैन हुए थे । गोविन्द वत्सगोत्रीय थे। विक्रान्त कौरव को प्रशस्ति के अनुसार वे 63 शलाका पुरुषों के चरित्र का वर्णन करने वाले उत्तरपुराण के रचियता गुणभद्र को परम्परा में उत्पन्न हुए थ्रे | गुणभद्र आचार्य जिनसेन के शिष्य थे। जिनसेन के गुरु बहुत विद्वान् वीरसेन थे । वीरसेन आचार्य समन्तभद्र के दो प्रधान शिष्य शिवकोटि और शिवायन की आध्यात्मिक परम्परा में उत्पन्न हुए थे । इस प्रकार हस्तिमल्ल की गुरु परम्परा आचार्य समन्तभद्र तक जाती है । हस्लिमल्ल के पिता के सुदूर पूर्ववर्ती गुरु समन्तभद्र थे । हस्तिमल्ल अपने पिता के छह पुत्रों में एक थे। विक्रान्त कौरव को अन्तिम प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि वे सभी दाक्षिणात्य थे । सभी कवि और विद्वान थे। उनके नाम ये हैं श्री कुमार कवि, सत्यवाक्य, देवरवल्लभ, उदयभूषण, हस्तिमल्ल और वर्द्धमान । अञ्जना जय तथा मैथिलीकल्याण की प्रस्तावना तथा चारों नाटकों के अन्त की पुष्पिका में हस्तिमल्ल के भाईयों के विषय में वही सूचना दी गयी है। मैथिली कल्याण नाटक की प्रस्तावना के अनुसार सत्यवाक्य ने श्रीमती और दूसरी कृतियाँ लिखी । शरण्यपुर पाण्ड्य राजा के द्वारा छोड़े हुए एक मतवाले हाथी को अपनी आध्यात्मिक शक्ति से वश में करने के कारण हस्तिमल्ल यह नाम पड़ा। विक्रान्त कौरव के प्रथम अङ्क

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