Book Title: Anekant 1941 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ १३२ अनेकान्त न्यासका निर्देश किया है तब 'टीकामाल' शब्द से सूचित होनेवाली टीकाकी माला में तो प्रभाचंद्रकृत शब्दाम्भोजभास्करको पिरोया ही जा सकता है। इस तरह प्रभाचंद्र के पूर्ववर्ती और उत्तरवर्ती उल्लेखोंके आधार से हम प्रभाचंद्र का समय सन् ९८० से १०६५ तक निश्चित कर सकते हैं । इन्हीं उल्लेखों के प्रकाश में जब हम प्रमेयकमलमार्त्तण्ड के 'श्रीभोजदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेख तथा न्यायकुमुदचंद्र के 'श्रीजयसिंहदेवराज्ये' आदि प्रशस्तिलेखको देखते हैं तो वे अत्यन्त प्रामा एक मालूम होते हैं। उन्हें किसी टीका टिप्पणकारका या किसी अन्य व्यक्तिकी करतूत कहकर नहीं टाला जा सकता । उपर्युक्त विवेचनसे प्रभाचंद्र के समय की पूर्वावधि और उत्तरावधि करीब करीब भोजदेव और जयसिंहदेवके समय तक ही आती है। अतः प्रमेयकमलमार्त्तण्ड और न्याय कुमुदचंद्र में पाए जानेवाले प्रशस्ति लेखों की प्रामाणिकता और प्रभाचंद्रकर्तृता में सन्देह को ग्राहकोंको सूचना । कान्तके ग्राहकों की सूची छपाई जा रही श्रतः जिन ग्राहकों को अपने पते श्रादिमें किसी प्रकार का संशोधन अथवा परिवर्तनादि कराना श्रभीष्ट हो वे शीघ्र ही इसकी सूचना अनेकान्त कार्यालयको देनेकी कृपा करें। व्यवस्थापक 'अनेकान्त' [ वर्ष ४ स्थान नहीं रहता । इसलिए प्रभाचंद्रका समय ई० ९८० से १०६५ तक माननेमें कोई बाधा नहीं है'। १ प्रमेयकमलमार्त्तण्ड के प्रथम संस्करणके सम्पादक पं० वंशीधरजी शास्त्री शोलापुरने उक्त संस्करण के उपोद्घात में ' श्रीभोज देवराज्ये ' प्रशस्ति के अनुसार प्रभाचंद्रका समय ईसाकी ग्यारहवीं शताब्दी सूचित किया है । और इसके समर्थन के लिए 'नेमिचंद्रसिद्धान्तचक्रवर्तीकी गाथाओं का प्रमेयकमलमार्चण्डमें उद्धृत होना' यह प्रमाण उपस्थित किया है। पर आपका यह प्रमाण अभ्रान्त नहीं है; प्रमेयकमलमार्त्तण्ड में ' विग्गहगइमावण्णा' और 'लोयायासपएसे' गाथाएँ उद्धृत हैं। पर ये गाथाएँ नेमिचंद्रकृत नहीं हैं । पहिली गाथा धवलाटीका ( रचनाकाल ई० ८१६) में उद्धृत है और उमास्वातिकृत श्रावकप्रज्ञप्ति में भी पाई जाती है । दूसरी गाथा पूज्यपाद ( ई० ६ वीं) कृत सर्वार्थसिद्धि में उधृत है । अत: इन प्राचीन गाथाओंोंको नेमिचन्द्रकृत नहीं माना जा सकता । अवश्य ही इन्हें नेमिचंद्रने जीव - काण्ड और द्रव्यसंग्रह में संग्रहीत किया है । अतः इन गाथाओंका उद्धृत होना ही पूभाचंद्रके समयको ११ वीं सदी नहीं साध सकता । आवश्यकता श्री श्रारमानन्दजी जैन गुरुकुल पंजाब, गुजरांवाला के लिए एक विशेष अनुभवी हिन्दी संस्कृतके अच्छे जानकार गुरुकुल शिक्षणपद्धतिमें विश्वास रखने वाले जैन प्रिंसिपल ( विद्याधिकारी ) की श्रावश्यकता है । प्रार्थी महानुभाव प्रमाणपत्र एवं प्रशंसापत्र तथा न्यूनातिन्यून ग्राह्य मासिक वेतनके साथ अधिष्ठाता के नामपर शीघ्र ही प्रार्थना पत्र भेजें ।

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