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विवाह कब किया जाय ?
( लेखिका - श्रीललिताकुमारी पाटणी 'विदुषी, प्रभाकर )
विश
वाह कब किया जाय यह एक ऐसा प्रश्न है जिसका एक व्यक्ति के लिए एक-सा उत्तर नहीं हो सकता। कारण कौन व्यक्ति किस समय विवाहके उत्तरदायित्वको झेलने की सामर्थ्य रख सकता है, यह उसकी अपनी परिस्थितिके ऊपर निर्भर है। कुछ विद्वान् विवाहके बारेमें वयसम्बन्धी समस्याका समाधान करनेके लिये बी और पुरुष दोनोंकी एक उम्र निश्चित करते हैं जो उनके लिये विवाहका उपयुक्त समय कहा जाता है किन्तु उस उम्रकी अवधि भी गरम और ठण्डे जलवायु तथा सामाजिक वातावरणकी विभि स्थान व समाज भेदके अनुसार फर्क हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि जो देश शीतप्रधान हैं उनमें रहने वाले स्त्रीपुरुषों की अपेक्षा उष्ण देशोंमें रहने वाले स्त्री-पुरुषों को विवाह वय यानी युवावस्था समय से कुछ पहले ही प्राप्त हो जाती है। फिर भी समाज विज्ञानके विज्ञान वर्तमान समय में सामान्य तौरपर सीके लिये विवाह काल १४-१६ और पुरुष के लिए २०-२५ वर्षकी अवस्था मानते हैं । विवाहका यह समय निर्धारित करनेमें केवल स्वास्थ्य और शारीरिक सङ्गठनको महत्व दिया गया है। इसमें स्त्री और पुरुषोंकी वैयक्तिक परिस्थितियों और विशेष अवस्थाओंकी ओर विचार नहीं किया गया। कारण व्यक्तिगत परिस्थिति हरएक व्यक्तिकी भिन्न-भिन्न होती है और उसके अनुसार उनके लिये विवाहकी अवस्था भी भिन्न ही होना चाहिये। कहने का मतलब यह है कि १४ और २० वर्षकी अवस्था प्राप्त होनेपर स्त्री-पुरुष येन केन प्रकारेण अपना विवाह रचा ही डालें इस मतसे यह आज्ञा नहीं मिल जाती है । हमें हमारी कुछ और परिस्थितियों, योग्यताओं और श्रवस्थाओं पर भी विचार करना पड़ेगा ।
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यदि हम उनकी उपेक्षा कर बैरेंगे तो कदाचित विवाहका फल भी हमें कटु ही मिलेगा, मधुर नहीं । इस लिये विवाहके लिये श्रवस्था क्रम सम्बन्धी मतसे यही अर्थ ग्रहण करना चाहिये कि १४ वर्षसे पहले स्त्रियोंको और २० वर्षसे पहले पुरुषोंको भूलकर भी विवाह क्षेत्रमें कदम नहीं उठाना चाहिये । वरना वे अपने सुन्दर भविष्य जीवनको जान-बूझकर बरबाद कर देंगे और इस अलभ्य मनुष्य पर्यायको अनायास ही खो बैठेंगे। देखना चाहिये कि विवाहके अवस्थाक्रम सम्बन्धी इस मतका हमारे समाजमें कहां तक श्रादर है ?
यह तो प्रसताकी बात है कि "अष्टवर्षा भवेदगौरी नववर्षा रोहिणी" ऐसी मान्यताएँ समाजके समझदार और बुद्धिमान लोगोंकी में बहे समझी जाने लगी हैं और ऐसी मान्यताओंके विरुद्ध समाज-हित-चिन्तक लोग आन्दोलन
भी खूब कर रहे हैं तथा उन आन्दोलनोंमें थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली है उन चाग्दोलनोंके कारण ही बाल-विवाह की बढ़ती हुई बादकी ओर ब्रिटिश गवर्नमेंट का भी ध्यान आकर्षित हुश्रा और उसको रोकनेकी आवश्यकता सरकारने महसूस की। फलस्वरूप शारदा एक्ट पास किया गया और उसके अनुसार अंग्रेजी हलकों में १४ वर्षसे पहले किसी भी बालिका और १८ वर्षसे पहले किसी भी बालकका विवाह नहीं किया जा सकता। किन्तु खेद है कि उन आन्दोलनोंका देशी राज्यों और खासकर हमारे राजपूताने में अभी तक यथेष्ट फल नहीं हुआ। कारण यही है कि अभी तक इधर हमारे समाज अशिक्षा और अज्ञानका विस्तार खूब है और वह
उन्हें पुरानी रूढ़ियों और कुरीतियोंके जरा भी खिलाफ जानेसे रोकता है । फलस्वरूप हर साल हजारों ही बाल-विवाहके उदाहरण हमारे प्रान्त और समाजमें दृष्टिगोचर हो रहे हैं।