Book Title: Anekant 1941 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 52
________________ १७२ अनेकान्त [वर्ष ४ ऐसी स्थिति में 'सरस्वती-कल्पलता' सूख जायगी। नीम कटु और इक्षु मधुर रहते हैं उसी प्रकार सत्पुरुष ____ अर्हदास महाकवि कहते हैं कि हमारी रचनाका और दुर्जन भी हैं। इनकी निन्दा तथा स्तुतिसे मेरा ध्येय अन्य जनोंका अनुरंजन करना नहीं है; उनको कोई भी विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। आनंद प्राप्त हो, यह बात जुदी है । सन्मानकी कविका भाव यह है कि सत्पुरुष अपने स्वभावके आकांक्षा भी इसका लक्ष्य नहीं है, यहां ध्येय अपने अनुसार कृपा करेंगे और दुर्जन अपनी विलक्षण अंतःकरणको आनंदित करना है । कविके शब्दोंमें ही प्रकृतिवश दोष निकालनेस मुख नहीं मोड़ेंगे। जैसे उनका भाव सुनिये कोई नीमकी निंदा या स्तुति करो, उसका कटु स्वभाव मनः परं क्रीडयितु ममैतत्काव्यं करिष्ये खलु बाल एषः। सदा रहेगा ही। न लाभपूजादिरतः परेषां, न लालनेच्छाः कलभा रमन्ते ॥१४॥ भगवान मुनिसुव्रतनाथके जन्मसे पुनीत होने -'अल्पबुद्धिधारी मैं लाभ-पूजादिकी आकांक्षा वाले राजगृह नगरके उन्नत प्रासादोंका वर्णन करते हुए से इस काव्यको नहीं बनाता हूँ किन्तु अपने अंतः अपह्नति अलंकारका कितना सुन्दर उदाहरण पेश करणको आनंदित करनेके लिए ही मैं यह कार्य करते हैं, यह सहृदय लोग जान सकते हैं। करता हूँ । गज-शिशु अपने आपको आनं.दत करनेके उनका कथन हैलिए क्रीड़ा करते हैं, दूसरोंको प्रसन्न करनेकी भ वना नैतानि ताराणि नभः सरस्याः से नहीं।' सूनानि तान्यादधते सुकेश्यः । ___यहाँ 'न लालनेच्छाः कलभा रमन्ते' की उक्ति बड़ी यदुच्चसौधाग्रजुषो मृषा चेत् । प्रगे प्रगे कुत्र निलीनमेभिः ॥ ४ ॥ ही मनोहारिणी है। 'ये ताराएँ नहीं हैं किन्तु आकाश रूपी सरोवरके नम्रतावश महाकवि कहते हैं, यद्यपि मेरी कृति पुष्प हैं, जिन्हें वहांके उच्च महलोंके अग्रभागमें पुराण-पारीण पुरातन कवि-सम्राटोंके समान नहीं है; स्थित स्त्रियां धारण करती हैं। यदि ऐसा न हो तो फिर भी यह हास्यपात्र नहीं है * । कारण, महत्वहीन क्यों प्रत्येक प्रभातमें वे विलीन होजाते हैं ?' शुक्तिके गर्भसे भी बहुमूल्य मुक्ताफलका लाभ होता है। ___ कविका भाव यह है कि आकाशके तारा आकाश जैन काव्योंकी विशेष परिपाटीके अनुसार सज्जन रूपी सरोक्रके पुष्प हैं । गजगृहीकी रमणियां अपने दुर्जनका स्मरण करते हुए कविवर उपेक्षापूर्ण भाव केशोंको सुसज्जित करने के लिये उन्हें तोड़ लिया धारण करते हुए लिखते हैं करती हैं, इसीसे प्रत्येक प्रभातमें उनका अभाव देखा तिक्तोस्ति निम्बो मधुरोस्ति चेतुः स्वं निंदतोपि स्तुवतोपि तहत । जाता है। दुष्टोप्यदुष्टोपि ततोऽनयोर्मे ___ताराओंका रात्रिमें दर्शन होना और प्रभातमें लोप __ निन्दास्तवाभ्यामधिकं न साध्यम् ॥१॥ होना एक प्राकृतिक घटना है, किन्तु कविने अपनी 'जिस प्रकार अपने प्रशंसक और निंदकके लिए कल्पना द्वारा इसमें नवीन जीवन पैदा कर दिया। * काव्यं करोत्येष किल प्रबन्धं पौरस्त्यवन्नेति हसन्तु सन्तः। दूसरे सर्गमें भगवानके पिता महाराज सुमित्रका किं शुक्तयोऽद्यापि महापराये मुक्ताफलं नो सुवते विमुग्धाः१५ वर्णन करते हुए बताया है कि वे सज्जनोंका प्रतिपा

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