Book Title: Anekant 1941 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 61
________________ किरण २ ] शैतानकी गुफामें साधु १८१ यहाँ श्राये होते तो यह खिंचाव कदापि न होता। अपना हित साधन भले ही कर सके, परन्तु उनके परंतु तुम तो एकदम भाग निकले थे। तुम्हारा वर्तमान अज्ञान बन्धुओंको तो उनके चरित्रसे किञ्चिन्मात्र आत्मप्रभाव तो तुमने इस आश्रममें ही पाकर प्राप्त ही लाभ पहुंच सकता है। जगत उनके चारित्रको किया है। अतएव काशाकी आरके खिंचावका निवृत देखनेके लिए वनमें नहीं जाता और जो कंदाचित् होना असम्भव है । परन्तु पूर्वके स्नेह-स्थानोंके वे ही जगत्में आवें तो उनके संसारी बन जानेका खिंचावमें भी श्रात्मत्याग पूर्वक योग देनेका अवसर भय रहता है अर्थात् संसारपर उनका उपकार केवल कोई विरले ही भाग्यशाली पुरुषों को प्राप्त होता है। परोक्ष और अल्प होता है। परन्तु जो व्यक्ति जगतके साधुके शिष्टाचारके ध्वंस हो जानेका भय न करके, मध्यमें रहते हुए, संसारी नहीं बनते तथा जगतसे तुम तुरन्त उस ओर विहार करनेका प्रबन्ध करो। कुछ न मांगकर उल्टा उसीको अपने पासकी उत्तमसे ___ स्थूल०-परन्तु यदि मैं अधिक पुरुषार्थको उत्तम सामग्री अर्पण कर देते हैं, वेही संसारका स्फुरित करके, साधुके शिष्टाचारमें जकड़े रहनेका वास्तविक कल्याण कर सकते हैं। जिसने आत्मप्रयत्न करूँ तो उसमें क्या अयोग्य होगा ? त्यागके महान यज्ञमें अपनी वासनाओंको होम दिया ___ संभूति --भद्र ! मेरा कथिताशय तुम अभी तक है, संसार उसका जितना भी आभार माने, सब थोड़ा नहीं समझ हो । शिष्टाचारमें जकड़े रहनेकी आवश्य. है। सांसारिक प्रभावका चहुँओरसे आकर्षित करता कता तभी तक है, जब तक कि आत्मा अर्पण करनेको हुआ दबाव जिनकी स्थितिकी दृढ़ता को धक्का नहीं तैयार नहीं है । जो अर्पण-त्याग करनेकी जगह उल्टे पहुँचा सकता, काजलकी कोठरीमें रहते हुए भी जिनलूटनेको तैयार हो जाते हैं; जो गंगामें पाप धोनेको की सफेदीपर दाग नहीं लग सकता, वे ही लोग जाकर, वहां मछली मारनेको बैठ जाते हैं, ऐसे लोगों- जगतके स्वागत और सम्मानके पात्र होते हैं। तात ! के लिए ही आचार-पद्धतिका विधान है। जो उस तुमने जो कार्य हाथमें लिया है, उसे तुम्हारा हृदयस्थितिको पार कर गये हैं, उन्हें तो संसारके जोखिम बल पूर्णताके शिखरपर पहुँचानेके योग्य है । निःशंक वाले स्थानपर जाकर, अपने बन्धुओंको आत्मत्यागका हो, अपने पूर्व स्नेहियोंसे जल्दी जाकर मिलो। दर्शन कगना है। अन्य साधुओंको जो उन स्थानोंपर स्थूल-प्रभो ! एक नवीन ही प्रकाश आज मेरी जानकी मनाईकी गई है, उसमें यही हेतु है कि उनमें आत्मा में प्रवेश कर रहा है। आपके वचनामृतसे याचनाकी पात्रता छुपी हुई है, वे अनुकूल प्रसंग अभी भी तृप्ति नहीं हो रही है अभी और वचनामृत आनेपर, भिखारी बनकर हाथ बढ़ाते हैं और मौका की वृष्टि कीजिए। पाकर लूटनेमें भी नहीं चूकते। जो लोग याचनाके संभूति-सिंहकी गुफामें जाकर उसका पराजय आकर्षणयुक्त स्थानमें याचना न करके उल्टा अर्पण करना अद्वितीय आत्माओंसे ही बन सकता है और करते हैं, वे जंगल तथा उपवनयुक्त प्रदेशोंमें विचरने तात ! तेरा निर्माण भी उसी विशेषताको सफलता तथा विहार करनेवाले याचकों से कई गुणा बढ़कर प्रदान करनेके हेतु हुश्रा है । जगतको ऐसे अद्वितीय है । वनमें विहार करने वाले याचक साधु कदाचित् व्यक्तिओंकी अत्यन्त आवश्यकता है। जिस समय

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