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अनेकान्त
[वर्ष ४
किन्तु पुण्य, स्वातंत्र-सौख्यका--
करता है अनुभव, आलिंगन !! पुण्य-पाप एक शब्दमें-पुण्य विजय है,-...-----
... और पाप है, घोर-पराजय -- पुण्य-पापका यह है परिचय !
... पुण्य-पापका यह है परिचय ! पाप, सदा कॉपा करता है
और पुण्य, रहता है निर्भय !! पुण्य-पापका यह है परिचय !! ___ xxx पाप, दीन-दुःखित-मलीन-सा
रहता है, ले मौनालम्बन ! पुण्य, तेज-मय हँसते-हँसते--
- करता है सुख-जीवन-यापन !! किन्तु सगे भाई हैं दोनों--
३. दोनोंका अभिन्न है श्रालय ! पुण्य-पापका यह है परिचय !!
पाप, ठोकरें खाता फिरता,
रोता है, होकर अपमानित ! पुण्य, दुलार-प्यारकी गोदी
में पलकर होता है विकसित !! पाप, निराशाकी रजनी है.
पुण्य, सफल प्राशाका अभिनय !! यह है पुण्य-पापका परिचय !!
श्री भगवत्' जैन
पाप, गुलामीकी कटुताका
करता रहता है प्रास्वादन !
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हल्दी घाटी
माँ तपस्विनी! हल्दीघाटी! क्यों उदास हो मन में? श्रांक चुकीं क्या महा-समरका-- रक्त - चित्र जीवनमें ? भंग करो अपनी नीरवता, अनुभव कुछ बतलाओ! वीरोचित कर्तव्य सुझाकर,
हमें स-शक्त बनायो !! देख चुकी हो तुम वीरोंकेउष्ण . रक्तकी धारें ! सन्मुख ही तो नहा रहीं थींशोणितसे तलवारे !!
तुमने देखा है स्वदेश परअपने प्राण चढ़ाते ! जीवन - मरण - समस्याका
तात्त्विक स्वरूप समझाते !! तुम्हें याद है बलिवेदी परप्राण चढ़ा प्रण पाला ! इसी शून्यमें कभी जली थीआज़ादी की ज्वाला !! तीर्थरूप हो वीर - नरोंकोजागृति - दीप संजोए ! यहां अखण्ड समाधि लगाकर, देश भक्त हैं सोए !! .
श्री 'भगवत जैन