________________
अनेकान्त
.
[वर्ष ४
भी करते रहना, महावीर भगवानकी स्तुतिकी समाप्ति लिलालेख शक संवत् १०५० (वि० सं० ११८५) का पर चरणोंमें पड़े हुए राजा और उसके छोटे भाईको लिखा हुआ है। इससे स्पष्ट है कि चंद्रप्रभ-बिम्बके आशीर्वाद देकर उन्हें सद्धर्मका विस्तृत स्वरूप प्रकट होनेकी बात उक्त कथा परसे नहीं ली गई बतलाना, राजाके पुत्र 'श्रीकंठ' का नामोल्लेख, राजा बल्कि वह समंतभद्रकी कथासे खास तौर पर सम्बन्ध के भाई ‘शिवायन' का भी राजाके साथ दीक्षा लेना, रखती है। दूसरे, एक प्रकारकी घटनाका दो स्थानोंपर
और समंतभद्रकी ओरसे भीमलिंग नामक महादेवकं होना कोई अस्वाभाविक भी नहीं है। हाँ, यह हा विषयमें एक शब्द भी अविनय या अपमानका न सकता है कि नमस्कारके लिये आग्रह श्रा दकी बात कहा जाना, ये सब बातें, जो नेमिदत्तकी उक्त कथा परसे ले ली गई हो * । क्योंकि राजाकथामें नहीं हैं, इस कथाकी स्वाभाविकताको वलिकथे श्रादिसे उसका कोई समर्थन नहीं होता, बहुत कुछ बढ़ा देती हैं । प्रत्युत इसके, नेमिदत्तकी और न समन्तभद्रके सम्बन्धमें वह कुछ युक्तयुक्त ही कथासे कृत्रिमताकी बहुत कुछ गंध आती है, जिसका प्रतीत होती है। इन्हीं सब कारणोंसे मेरा यह कहना कितना ही परिचय ऊपर दिया जा चुका है । इसके है कि ब्रह्म ने मदत्तने 'शिवकोटि' को जो वाराणसी सिवाय, राजाका नमस्कारके लिये आग्रह, समन्त- का राजा लिखा है वह कुछ ठीक प्रतीत नहीं होता; भद्रका उत्तर, और अगले दिन नमस्कार करनेका उसके अस्तित्वकी सम्भावना अधिकतर कांचीकी वादा, इत्यादि बातें भी उसकी कुछ ऐसी ही हैं जो ओर ही पाई जाती है, आ समन्तभद्रके निवासादिका जीको नहीं लगतीं और आपत्ति के योग्य जान पड़ती प्रधान प्रदेश रहा है । अस्तु । हैं । नेमिदत्त की इस कथापरसे ही कुछ विद्वानोंका शिवकोटिने ममन्तभद्रका शिष्य होनेपर क्या क्या यह खयाल होगया था कि इसमें जिनबिम्बकं प्रकट कार्य किये और कौन कौनस ग्रंथोंकी रचना की, यह सब होनेकी जो बात कही गई है वह भी शायद कृत्रिम एक जुदा ही विषय है जो खाम शिवकोटि आचार्यके ही है और वह 'प्रभावकचरित' में दी हुई 'सिद्धसेन चरित्र अथवा इप्तिहाससे सम्बन्ध रखता है, और दिवाकर' की कथासे, कुछ परिवर्तनके साथ, ले ली इस लिये मैं यहां पर उसकी कोई विशेष चर्चा करना गई जान पड़ती है-उसमें भी स्तुति पढ़ते हुए इसी उचित नहीं समझता। तरह पार्श्वनाथका बिम्ब प्रकट होने की बात लिखी है।
* यदि प्रभाचन्द्रभट्टारकका गद्य कथाकोश, जिसके आधार परन्तु उनका वह खयाल गलत था और उसका
पर नेमिदत्तने अपने कथाकोशकी रचना की है, 'प्रभावकनिरमन श्रवणबेल्गोलके उस मल्लिषेणप्रशस्ति नामक चरित' से पहलेका बना हुआ है तो यह भी हो सकता है शिलालेखसे भले प्रकार हो जाता है, जिसका कि उसपरसे ही प्रभावचरितमें यह बात ले ली गई हो। 'वंद्यो भस्मक' नामका प्रकृत पद्य ऊपर (वृ०५२
परन्तु साहित्यकी एकतादि कुछ विशेष प्रमाणोंके बिना दोनों
ही के सम्बन्धमें यह कोई लाज़िमी बात नहीं है कि एकने पर) उद्धृत किया जा चुका है और जो उक्त प्रभावक
दूसरेकी नकल ही की हो; क्योंकि एक प्रकारके विचारोंका चारतस १५९ वष पाहलेका लिखा हुआ है-प्रभावक- दो ग्रन्थकर्ताअोके हृदयमें उदय होना भी कोई असंभव चरितका निर्माणकाल वि० सं० १३३४ है और नहीं है ।