Book Title: Anekant 1941 03
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 36
________________ अनेकान्त [ वर्ष ४ का, ५७५ में सिंह विष्णुका, ६०० से ६२५ तक करनेका भी अभी तक पूरा आयोजन नहीं हुआ। महेन्द्रवर्मन्का, ६२५ से ६४५ तक नरसिंहवर्मन्का, जैनियोंके ही बहुतसे संस्कृत, प्राकृत, कनड़ी, तामिल ६५५ में परमेश्वरवर्मन्का, इसके बाद नरसिंहवर्मन्- और तेलगु आदि ग्रंथोंमें इतिहासकी प्रचुर सामग्री द्वितीय (राजसिंह ) का और ७४० में नन्दिवर्मनका भरी पड़ी है जिनकी ओर अभी तक प्रायः कुछ भी नामोल्लेख मिलता है। ये सब राजा पल्लव वंशके लक्ष्य नहीं गया। इसके सिवाय, एक एक राजाके थे और इनमें 'सिंहविष्णु' से लेकर पिछले सभी कई कई नाम भी हुए हैं और उनका प्रयोग भी राजाओंका राज्यक्रम ठीक पाया जाता है + । परन्तु इच्छानुसार विभिन्न रूपसे होता रहा है, इससे यह सिंहविष्णुसे पहलेके राजाओंकी क्रमशः नामावली भी संभव है कि वर्तमान इतिहासमें 'शिवकोटि' और उनका राज्यकाल नहीं मिलता, जिसकी इस का किसी दूसरे ही नामसे उल्लेख हो * और वहाँ अवसर पर-शिवकोटिका निश्चय करने के लिये- पर यथेष्ट परिचयके न रहनेसे दोनों का समीकरण खास जरूरत थी। इसके सिवाय, विंसेंट स्मिथ साहब न हो सकता हो, और वह समीकरण विशेष अनुने, अपनी 'अर्ली हि टरी आफ इंडिया' (पृ. संधानकी अपेक्षा रखता हो। पर तु कुछ भी हो, २७५-२७६ ) में यह भी सूचित किया है कि ईसवी इतिहासकी ऐसी हालत होते हुये, बिना किसी गहरे सन् २२० या २३० और ३२० का मध्यवर्ती प्रायः अनुसंधानके यह नहीं कहा जा सकता कि 'शिवकोटि' एक शताब्दीका भारतका इतिहास बिलकुल ही अंध- नामका कोई राजा हुआ ही नहीं, और न शिवकोटि काराच्छन्न है-उसका कुछ भी पता नहीं चलता। के व्यक्तित्वसे ही इनकार किया जा सकता है । इससे स्पष्ट है कि भारतका जो प्राचीन इतिहास 'राजावलिकथे' में शिवकोटिका जिस ढंगसे उल्लेख संक लत हुआ है वह बहुत कुछ अधूरा है। उसमें पाया जाता है और पट्टावली तथा शिलालेखों आदिशिवकोटि जैसे प्राचीन राजाका यदि नाम नहीं द्वारा उसका जैसा कुछ समर्थन होता है उस परसे मिलता तो यह कुछ भी आश्चर्यकी बात नहीं है। मेरी यही राय होती है कि 'शिवकोटि' नामका यद्यपि ज्यादा पुराना इतिहास मिलता भी नहीं, परंतु अथवा उस व्यक्तित्वका कोई राजा जरूर हुआ है, जो मिलता है और मिल सकता है उसको संकलित और उसके अस्तित्वकी संभावना अधिकतर कांचीकी 1 ओर ही पाई जाती है। ब्रह्मनेमिदत्तने जो उसे वारा. *कांचीका एक पल्लवराजा 'शिवस्कंद वर्मा भी था, जिसकी ओरसे 'मायिदावोलु' का दानपत्र लिखा गया है. ऐसा णसी (काशी-बनारस ) का राजा लिखा है वह कुछ मद्रासके प्रो० ए० चक्रवर्ती 'पंचास्तिकाय' की अपनी *शिवकोटिसे मिलते जलते शिवस्कंदवर्मा (पल्लव). शिवअंग्रेजी प्रस्तावनामें सूचित करते हैं। आपकी सूचनाअोके मृगेशवर्मा (कदम्ब), शिवकुमार (कुन्दकुन्दका शिष्य), अनुसार यह राजा ईसाकी १ ली शताब्दीके करीब (विष्णु- शिवस्कंद वर्मा हारितीपत्र (कदम्ब), शिवस्कंद शातकर्णि गोपसे भी पहले) हुअा जान पड़ता है। (आन्ध्र), शिवमार (गंग), शिवश्री (आन्ध्र), और शिवदेव + देखो, विसेंट ए. स्मिथ साहबका 'भारतका प्राचीन (लिच्छिवि), इत्यादि नामोके धारक भी राजा हो गये हैं। - इतिहास' (Early History of India), संभव है कि शिवकोटिका कोई ऐसा ही नाम रहा हो, तृतीय संस्करण, पृ० ४७१ से ४७६ । अथवा इनमेंसे ही कोई शिवकोटि हो।

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