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अनेकान्त
[वर्ष ।
मध्यके १८ वें पत्रके प्रथम पृष्ठपर लिखते समय १७वें सात * पद्य तथा समाप्ति-विषयक अन्तिम पद्य भी पत्रके द्वितीय पृष्ठकी छाप लग जानेके कारण वह संस्कृत भाषामें हैं, शेष हिंदीमें कुछ उदाहरण हैं और खाली छोड़ा गया है । पत्रकी लम्बाई ८१ और कुछ उदाहरण ऐसे भी हैं जो अपभ्रंश तथा हिंदीके चौड़ाई ५३ इंच है। प्रत्येक पृष्ठपर प्रायः २० पंक्तियाँ मिश्रितरूप जान पड़ते हैं । इस तरह इस ग्रंथ परसे है, परंतु कुछ पृष्ठोंपर २१ तथा २२ पंक्तियाँ भी हैं। कविवरके संस्कृत भाषाके अतिरिक्त दूसरी भाषाओं में प्रत्येक पंक्तिमें अक्षर-संख्या प्रायः १४ से १८ तक रचनाके अच्छे नमूने भी सामने अाजाते हैं और पाई जाती है, जिसका औसत प्रति पंक्ति १६ अक्षरों उनसे आपकी काव्यप्रवृत्ति एवं रचनाचातुर्य आदि का लगानेसे ग्रंथकी श्लोकसंख्या ५५० के करीब होती पर अच्छा प्रकाश पड़ता है। है। यह प्रति देशी रफ कागजपर लिखी हुई है और यह छंदोविद्याका निदर्शक पिंगलग्रन्थ गजा बहुत कुछ जीर्ण-शीर्ण है, सील तथा पानीके कुछ भारमल्लके लिये लिखा गया है, जिन्हे 'भारहमल्ल' उपद्रवोंको भी सहे हुए है, जिससे कहीं कहीं स्याही तथा कहीं कहीं छंदवश - भारु' नामसं भी उल्लेफैल गई है तथा दूसरी तरफ फूट पाई है और अनेक खित किया गया है और जो लोकमें उस समय बहुत स्थानोंपर पत्रोंके परस्परमें चिपकजानेके कारण अक्षर ही बड़े व्यक्तित्वको लिये हुए थे । छंदोंके लक्षण अस्पष्टसे भी हो गये हैं। हालमें नई सूचीके वक्त प्रायः भारमल्लजीको सम्बोधन करके कहे गये हैं जिल्द बँधालेने आदिके कारण इसकी कुछ रक्षा उदाहरणों में उनके यशका खुला गान किया गया है और होगई है। इस प्रथप्रतिपर यद्यपि लिपिकाल दिया हुआ इससे राजा भारमल्लके जीवन पर भी अच्छा प्रकाश नहीं है, परंतु वह अनुमानतः दोसौ वर्षसे कमकी पड़ता है-उनकी प्रकृति, प्रवृत्ति, परिणति, विभूति, संलिखी हुई मालूम नहीं होती । यह प्रति 'महम' नामके पत्ति,कौटुम्बिक स्थिति और लोकसंवा आदिकी कितनी किसी ग्रामादिकमें लिखी गई है और इसे 'स्यामराम ही ऐतिहासिक बातें सामने आजाती हैं । इन्हीं मब भोजग' ने लिखाया है। जैसा कि इसकी "महममध्ये बाताका लक्ष्य रखकर आज अनेकान्तके पाठकोंके
सामने यह नई खोज रक्खी जाती है और उन्हें इस लिषावितं स्यामरामभोजग ॥” इस अन्तिम पंक्तिसे
लुप्तपाय ग्रंथका कुछ रसास्वादन कराया जाता है, प्रकट है।
जो अर्सेसे आँखोंस ओझल हारहा था और जिसकी कविवरके जो चार ग्रंथ इससे पहले उपलब्ध स्मृतिको हम बिल्कुल ही भुलाए हुए थे । साथ ही, हुए हैं वे चारों ही संस्कृत भाषामें हैं; परंतु यह ग्रंथ राजा भारमल्लका जो कुछ खण्ड इतिहास इस ग्रंथ संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और हिन्दी इन चार
परसे उपलब्ध होता है उसे भी संक्षेपमें प्रकट किया भाषाओं में है, जिनमें भी प्राकृत और अपभ्रंश प्रधान हैं और उनमें छंदशास्त्रके नियम, छंदोंके लक्षण तथा
. * संख्याङ्क ६ पड़े हैं-दूसरे तीसरे पद्यपर कोई नम्बर न
देकर ४ थे पद्यपर नम्बर ३ दिया है और आगे क्रमश: उदाहरण दिये हैं; संस्कृतमें भी कुछ नियम, लक्षण ४, ५, ६ । संख्याङ्कोके देनेमें आगे भी कितनी ही गड़बड़ तथा उदाहरण दिये गये हैं और प्रथके पारंभिक पाई जाती है ।