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अनेकान्त
[वर्ष ४
गहीके पट्टधर श्री पूज्य धरणीन्द्रसूरिजीके पास है, . नंदि या नामान्त पद सम्बन्धी जिन जिन खरतइसी प्रकार खरतरगच्छकी अन्यान्य शास्त्राओंके दफतर रगच्छीय विशेष बातोंका ऊपर उल्लेख किया गया है, उनके श्रीपूज्यों व भंडारोंमें मिलेंगें। बीकानेर गद्दीके वे सब खरतरगच्छीय जिनभद्रसूरि-बृहत्-शाखाके श्री पूज्य जिनचारित्रसूरिजीके पासका दफ़तर हमने दृष्टिकोणसे लिखी गई हैं, संभव है खरतरकी अन्य देखा है। अन्य श्रीपूज्यों में से कइयोंने तो दफतर खो शाखाओं में परिपाटी की कुछ भिन्नता भी हो। दिये हैं, कईएक दिखलाते नहीं। इन दफ़तरोंमें दीक्षित
वर्तमान . उपयुक्त परिपाटी केवल यतिसमाजमें मुनि-यतियोंकी नामावली इस प्रकार लिखी मिलती
ही है और दफ़तर लेखनकी प्रणाली तो अब उनमें
भी उठती जारही है । मुनियों में तो करीब १०० वर्षांसे "संवत् १७७६ वर्षे श्री बीकानेर मध्ये श्री जिनसुख- उपयुक्त प्रणालिये व्यवहृत नहीं होती। अब मुनियों सूरिभिः वल्लभनंदि कृता । पौष सुदि ५ दिन" में नामान्तपद "सागर" सर्वाधिक और मोहन मुनिजी (पूर्वावस्थानाम) (दीक्षितनाम) (गुरुनाम) ।
के संघाड़ेमें "मुनि" और साध्वियोंमें "श्री" नामान्त लक्ष्मीचन्द ललितवल्लभ पं० लीला पद ही रूढ़ सा होगया है । गुरुशिष्यका नाम भी एक रूपचन्द राजवल्लभ श्री राजसागर ही नामान्तपद वाला होता है। इससे कई नाम सार्थक अतः इससे हमें उन श्रीपूज्योंके आज्ञानुवर्ती
एवं सुन्दर नहीं होते। मरी नम्र सम्मतिमें प्रार्चन
परम्पराका फिरसे उपयोग करना चाहिये । प्रत्येक मुनि-यतिक दीक्षासंवत् , स्थान, दीक्षा देन वाले आचार्यका नाम, गुरुका नाम,पूर्वावस्था व दीक्षि- ___ ऊपर जो कुछ बातें कही गई हैं वे खरतरगच्छक तावस्थाके नामोंका पता चल सकता है । अतएव ऐसे दृष्टिकोणसे हैं। इसी प्रकार अन्य विद्वानोंको अन्य दफ़तरों को नकलें यदि इतिहासकारोंक पास हों तो गच्छोंकी नामान्तपद सम्बन्धी विशेष परिपाटियोंका उनकी बहुतसी दिक्कतें कम हो जॉय, समय एवं अनुसन्धान कर उन्हें प्रगट करना चाहिये । आशा है परिश्रमकी बचत हो सकती है, एवं बहुमूल्य इतिहास अन्यगच्छीय विद्वान इस आर शीघ्र ध्यान देगें। लिखा जासकता है।
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