Book Title: Anchalgacchiya Pratishtha Lekho Part 01 and 02
Author(s): Parshwa
Publisher: Akhil Bharat Anchalgaccha Vidhipaksha Shwetambar Jain Sangh
View full book text
________________
(८८५) ॥ एर्द० ॥ ॐ नमः सिद्धं वीर संवत् २३८६ विक्रम संवत १९१६ना वर्षे शाके १७८२ प्रवर्तमाने जेठ सुद १३ ने शुक्रे श्री कच्छदेशे अंजारनगरे श्री विधिपक्षगच्छे (अंचलगच्छे) पूज्य भट्टारक श्री १०८ श्री रत्नसागरसूरीश्वरजो विजयराजे तस्याज्ञाकारी मुनि क्षमालाभजीमुपदेशात् श्री भूजनगर निवासी वडोडागोत्रे शे० प्रागजी भवानजी नवीन प्रासाद करावितं अंजारनगरे अचलगच्छे संघमुख्य सा० वालजी शांतिदास सहितेन श्री सुपार्श्वनाथजिनबिंब प्रतिष्ठितं तं । श्री जिनभक्तमातंग यक्षा शांतादेवी चक्रेश्वरीदेवी महाकालीजी एवं मूर्ति च तसू स्थापिता ॥
॥ ई० ॥ नमः अथः जिनालय-प्रशस्ति लिख्यते ॥ ॐ ।। [४] अथः श्रीमद्विक्रमार्क नृपति समयातीत संवत् १९१८ वर्षे शालिवाहन भूपाल कृत शाके १७८३ प्रवर्त्तमाने श्री माघमासे शुक्लपक्षे पंचम्यां तिथौ श्री सोमवासरे मध्याह्नकालसमये। श्री विजयमुहूर्ते जिनबिंव स्थापना कृता। श्री कच्छ देशे श्री नलिनपुरनगरे माहाराजाधिराज राउश्री प्राग्मलजी विजयराज्ये यदुवंशकुलविभूषण जाडेजा श्री आसारीआजी राज्ये। श्रीमदचलगच्छे श्री धीराजः सकल भट्टारक शिरोमणि पूज्य पुरंदरः भट्टारक श्री श्री श्री १००८ श्री रत्नसागरसूरीश्वराणामुपदेशात् ॥ श्री अंचलगच्छे उशवंशशातीय लघुशाखायां श्री नागडागोत्रे दिन दिन अधिक प्रतापश्चिरंजीवी साह श्री नाथा भारमल्ल तद् भार्या मांकबाई तत्पुत्र साह श्री लखमण तथा दिन दिन अधिक प्रताप चिरंजीवी साह श्री नरसी ॥ साह श्री लखमण तद्भार्या वेजबाई तत्पुत्र साह श्री राघव तद्भार्या देमतबाई तत्पुत्र साह उभाईआ तद्भार्या उमाबाई तत्पुत्री गंगाबाई ॥ चिरंजीवी शेठजी साह नरसी तद् भार्या कुंअरबाई तत्पुत्र चिरंजीवी शेठजी साह श्री हीरजी तद्भायर्या सद्धर्मचारिणी पुन्यवंत बाई पुरबाई तत्पुत्रौ दिन दिन अधिक प्रताप चिरंजीवी शेठजी साह वीरजी तथा दिन दिन अधिकप्रताप चिरंजीवी शेठजी साह हरभमजी तथा पुत्री मोंघीबाई । शेठजी वीरजी तद्भार्या लीलबाई तत्पुत्र साह आणंदजी। तथा चिरंजीवी शेठजी साह हरभमजी तद् भार्या पतिव्रता बाई जेतबाई तत्पुत्र साह खीमजी तथा पुत्री देवकुंअर सहितेन श्री अष्टापदचैत्य चतु द्वार उत्तंग मनोहर प्रासाद शिखरबंध कारितं । तत्य श्री ऋषभादि प्रमुख चतुर्विशति. जिनबिंबं स्थापिता । तथा मूलगंभारा मध्ये शासन-यक्ष । गौमुख तथा शासन-यक्षणी देवी चक्रेश्वरी तथा शासन-देवी पद्मावति प्रतिष्ठापिता तथा देहरा उपरे चौमुख जिनबिंबं ४ स्थापितं ॥ मूल देहराने सन्मुख देहरो सिखरबंध ते मध्ये श्री पद्मप्रभस्वामि प्रमुख जिनबिंब छ तथा मूल देहराने पूर्व दिशे देहरीओ छे ते मध्ये जिनबिंब २ थे। पासे अजितनाथ ॐ कार करी छे। तेना नाम सा० भारमल तेजशी १। सा० माडण तेजशी २। सा० वर्धमान नेणशी ३। साह माडण गोवंदजी ४। सा० अरजण धनराज ५ ते मिलीने शेठजीई कयो । प्रतिष्टामहोछव न्यातिमेलो कृतं तथा न्याति मध्ये हांडो त्रांबानो १ तथा त्रांस त्रांबानो १ । कलसीओ पीत्तलनो १ तथा कोरी ७ नी लाणी करी। लिखितं चतुर्मासी मु० गुणसागरजी। गजधर सलाट मुरारजी कडुआ ॥ श्री नलिन(८८५) [४२७]ना श्री सुपाश्वनाथ-जिनालयना शिaan. (૮૮૬) નલિયાક૭ના શ્રી અષ્ટાપદ-જિનાલયનો શિલાલેખ.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com