Book Title: Anandghan ka Rahasyavaad Author(s): Publisher: ZZZ Unknown View full book textPage 6
________________ ४ आनन्दघन का रहस्यवाद विभिन्न धर्म-ग्रन्थों में 'रहस्य' का अर्थ विभिन्न धर्म-ग्रन्थों में भी 'रहस्य' का प्रत्यय उपलब्ध होता है । ऋग्वेद में 'रहस्प्रि वागः " के 'रहस्' शब्द का प्रयोग 'गुह्य' अर्थ में हुआ प्रतीत होता है । वस्तुतः गुरु और रहस्य शब्द समानार्थक हैं । 'उपनिषद्' शब्द भी 'रहस्यात्मकता' का परिचायक है जिसका अर्थ है 'रहस्यमय पूजा पद्धति' । भगवद्गीता में इस शब्द का विशेष प्रयोग दृष्टिगत होता है । वहाँ एकान्त अर्थ में 'योगी युञ्जीत सततं आत्मानं रहसि स्थितः तथा मर्म अर्थ में 'भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ४ और गुह्यार्थ में 'गुह्याद्गुह्यतरं, " ' सर्व गुह्यतमं, ' 'परमं गुह्यं " तथा आध्यात्मिक उपदेश के अर्थ में 'परमं गुह्यमध्यात्म संज्ञितम् ' ' इत्यादि द्रष्टव्य हैं । जिस प्रकार वैदिक साहित्य में 'रहस्' शब्द का प्रत्यय पाया जाता है, उसी तरह जैनागम नानायकहाओ उत्तराध्ययन, पह्लावागरणं," सूयडांग, १२ रायपसेणी, दसवैकालिय, , "औपनिव १६ ७ ९ १० १९ ११. १२. १. ऋग्वेद, २।२९।१ । 2. Indian writers use the term (Upanishad) in the sense of secret doctrine or Rahsya. Upanishadic texts are generally referred to as Paravidya, the great secret. -Prof. A. Chakravarti, Introduction to Samayasar of Kund Kund - Bhartiya Gyana Pith, Kashi. Ist Edition May 1950, p. XLIV-XLV. ३. भगवद्गीता - ६।१० । ४. वही, ४१३ । ५. वही, १८६३ । ६. वही, १८ ६४ । ७. वही, १८६८ । ८. वही, ११।१ । ९. १०. नायाघम्म कहाओ, १।७।१४, ८ १४ । उत्तराध्ययन, १।१७ । पण्हा वागरणं, १४ १५ सूयडांग, १।४।१।१८ । १३. रायपसेणी, २१०।२८३ । १४. दसवैकालिय, ५।१।१६ एवं १०।१७ ॥ १५. औपपातिक, ३८ ।Page Navigation
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