Book Title: Alankar Chintamani ka Aalochanatmaka Adhyayan
Author(s): Archana Pandey
Publisher: Ilahabad University

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Page 14
________________ विद्याधर द्वारा निरूपित रूपक आरोपविषयस्य स्यादतिरोहितरूपिण । उपरञ्जकमारोप्यमाण तद्रूपक मतम् ।। अत्रारोपविषयस्येत्यनेन अध्यवसायगर्भस्य उत्प्रेक्षादे अनारोप मूलाना चोपमादीना व्यावृत्ति । अतिरोहितरूपण इत्यनेन संदेह भ्रान्तिमदपह्नुति प्रमुखाणा व्यावृत्ति I संदेहालका विषयस्य संदिह्यमानतया तिरोधानम् 1 भ्रान्तिमदलकारे भ्रान्त्या विषयतिरोधानम् । अपह्नुत्यालकारेऽपह्न वेनारोपविषयतिरोधानम् । उपरञ्जकमित्यनेन परिणामालडकारव्यावृत्ति । परिणामे आरोप्यमाणस्य प्रकृतोपर्योगत्वेनान्वयो न प्रकृतोपरञ्जकत्वेन । अत सादृश्यमूलेभ्य सर्वेभ्यो विलक्षण रूपकम् । तस्य प्रथम त्रैविध्यम् - - सावयव निवयव परम्परितचेति 1 सावयव द्विविधम् समस्तवस्तुविषयमेकदेशविवर्ति चेति निरवयव द्विविघ् केवल मालारूप चेति । परम्परितस्यापि श्लिष्ट निबन्धनत्वेनाश्लिष्टनिबन्धनत्वेन च द्वैविध्यम् । तयोरपि प्रत्येक केवल मालारूपतया चातुर्विध्यम् । एवमष्टध रूपकालकार 1 - प्रतापरूद्रीयम् पृ० - 1 443-444 आचार्य विद्यानाथ ने प्रताप रूद्रदेव की प्रशस्ति मे 'प्रतापरुद्रयशो भूषण' नामक काव्यशास्त्रीय लक्षणग्रन्थ का निर्माण किया । जिससे लक्ष्य के रूप मे प्रतापरुद्रदेव के यश तथा प्रताप का वर्ण है । प्रताप रूद्रदेव ने यादव वश (देवगिरि के रामदेव1271 से 13090 के सेवण को पराजित किया इस घटना से और अन्य शिलालेखों से यह पता चलता है कि प्रताप रूद्रदेव तेरहवीं शताब्दी के अन्तिम चरण मे और

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