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अहिंसा : व्यक्ति और समाज बध्य-बंधक जाति का विरोध है । पानी और आग एक साथ नहीं रह सकते इसलिए उनमें सहानवस्थान जाति का विरोध है।
भेद और विरोध की स्थिति में हम सह अस्तित्व की कल्पना नहीं कर सकते। जैन-दर्शन ने इस समस्या का समाधान खोजा। उस समाधान की भित्ति पर अहिंसा की प्रतिष्ठा की गई। अनेकान्त में विरोध के परिहार का एक प्रशस्त दृष्टिकोण है। उसका एक सूत्र है-इस विश्व में सर्वथा विरोध और सर्वथा अविरोध जैसा कुछ भी नहीं है। सर्वथा भेद और सर्वथा अभेदये सत्य नहीं हैं। जहां विरोध अभिव्यक्त है, वहां अविरोध उसके नीचे छिपा हुआ है। इसी प्रकार भेद के नीचे अभेद और अभेद के नीचे भेद तिरोहित रहता है। हम केवल भेद और विरोध को देखते हैं तो हिंसा को बल मिलता है। केवल अभेद और अविरोध को देखते हैं, तो हमारी उपयोगिता की धारणा टूटती है । व्यवहार ठीक से नहीं चलता, इसलिए भेद और अभेद तथा विरोध और अविरोध में सापेक्षता का अनुभव करना, उनमें सामंजस्य स्थापित करना हिंसा की समस्या का समाधान है। इसी आधार पर सह-अस्तित्व के सिद्धांत की क्रियान्विति की जा सकती है। पदार्थवादी दृष्टिकोण
____ मनुष्य में अहंकार की वृत्ति है इसलिए वह बड़ा बनना चाहता है। अथवा सबसे बड़ा बनना चाहता है। इस महत्त्वाकांक्षा से पदार्थवाद की आधारशिला निर्मित हुई है। मनुष्य में संवेदन है। वह प्रिय संवेदन चाहता है । इस सुखवादी और सुविधावादी दृष्टिकोण ने पदार्थवाद का प्रासाद खड़ा किया है । पदार्थ वाद के प्रासाद की ऊंचाई को छूने वाला कोई भी व्यक्ति नीचे खड़े लोगों की ओर देखना ही नहीं चाहता। आज व्यक्ति-शक्ति अपने अंहकार और सुख-सुविधा की दिशा में लगी हुई है। फिर हम विश्व-शांति और अहिंसा की बात कैसे सोचें और कैसे उसकी क्रियान्विति करें ? शांति और अहिंसा कोरा दर्शन ही नहीं है, वह एक आचरण है। सिद्धान्त की अपेक्षा आचरण का पक्ष अधिक कठिन है। पूरे समाज का आचरण महत्त्वाकांक्षा और सुख-सुविधावाद से संप्रेरित है। इसका परिणाम अशांति और हिंसा है । उसे बदलने के लिए हम कैसे सफल हो सकते हैं ? यह प्रश्न एक बार नहीं, अनेक बार मन को आंदोलित कर देता है । हम अहिंसा की बात सोचते हैं पर समझ नहीं पाते कि हिंसा के चक्र को कहां से तोड़ें? क्या महत्त्वाकांक्षा को त्यागना इतना सरल है कि चर्चा और चिंतन-मात्र से आदमी उसे छोड़ देगा ? क्या सुख-सुविधा को त्यागना इतना सहज है कि आदमी अहिंसा के विचार को पढ़कर सुख-सुविधा से विमुख हो जाएगा? महत्त्वाकांक्षा और सुख-सुविधा की विमुखता नहीं होगी तो शस्त्रीकरण की होड़, युद्ध, अशांति और हिंसा का
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