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वेश्व-शांति और अहिंसा
सहअस्तित्व
हम एक पृथ्वी पर जी रहे हैं, एक ही सौरमंडल के प्रभाव क्षेत्र में श्वास ले रहे हैं । अन्तर्नक्षत्रीय विकिरण हम सब को प्रभावित कर रहा है। हम सबको अनुकूल वातावरण और पर्यावरण की अपेक्षा रहती है। इस प्राकृतिक स्थिति ने सह-अस्तित्व की धारणा को जन्म दिया है । हमें एक साथ जीना है, एक साथ रहना है । यह हमारी प्रकृति है । इस प्रकृति में कुछ अवरोध भी हैं। प्राकृतिक और भौगोलिक अवरोध कम हैं, कृत्रिम या काल्पनिक अवरोध अधिक हैं। हमने बहुत सारी मान्यताएं और धारणाएं बना ली हैं। उनकी चादर को ओढ़कर हम घूम रहे हैं। इसलिए वास्तविकता के साथ हमारा सीधा संपर्क नहीं होता । चादर की ओढ़नी में ढकी हुई आंखें जो देखती हैं, वही हमारे लिए सच्चाई बनी हुई है। इस चादर से छनकर जो श्वास आ रहा है, वही हमारे लिए शुद्ध प्राणवायु है। खुली आंख से देखने और खुले नाक से सांस लेने का अवसर कम मिलता है, या नहीं मिलता। इसीलिए मनुष्य-मनुष्य के बीच बहुत बड़ी दीवारें खड़ी हैं। वे एक-दूसरे को देख ही नहीं पा रही हैं। साक्षात्कार के बिना एक-दूसरे को समझने का अवसर ही कहां आता है ?
जाति-भेद, रंग-भेद और संप्रदाय-भेद-यह भेद की त्रिपुटी है। इस त्रिपुटी ने मनुष्य को बांट दिया और इतना बांट दिया कि उसके सामने शत्रुता का दर्शन जितना स्पष्ट है, मैत्री का दर्शन उतना स्पष्ट नहीं है। इस शत्रता के दर्शन ने प्राकृतिक सह-अस्तित्व को विकृति जैसा बना दिया। आज विश्व-मंत्री या विश्व शांति के सिद्धान्त को समझाने के लिए बहुत प्रयत्न की जरूरत पड़ती है । शत्रुता और अशांति को समझाने की कोई जरूरत नहीं है।
एक व्यक्ति हिन्दुस्तान का नागरिक है, दूसरा पाकिस्तान का। यह राष्ट्रीयता का भेद उन्हें बांटे हुए है। हिन्दुस्तान के व्यक्ति में हिन्दुस्तान की भूमि के प्रति जितना लगाव होता है, उतना पाकिस्तानी मनुष्य के प्रति लगाव नहीं है । वास्तव में मनुष्य मनुष्य के अधिक निकट होता है । व्यवहार इससे भिन्न है । व्यवहार की सीमा में पदार्थ के प्रति जितना लगाव है उतना मनुष्य के प्रति नहीं है । जाति, रंग और संप्रदाय की धारणा के प्रति जितना लगाव है उतना मनुष्य के प्रति नहीं है । वास्तविक सत्य और व्यवहार की दूरी सचमुच एक जटिल समस्या है।
दर्शन शास्त्र में तीन प्रकार के विरोध निर्दिष्ट हैं-प्रतिबिध्य-प्रतिबंधक, बध्य-बंधक और सहानवस्थान । बल्ब प्रकाश की रश्मियों को बिखेर रहा था, इतने में किसी ने स्विच ऑफ कर दिया। प्रकाश अंधकार में बदल गया । यह प्रतिबध्य-प्रतिबंधक जाति का विरोध है । सांप और नेवले में
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