Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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२२७
अध्ययनं :६, उद्देशक:
जं सिविणे विन कायव्वंतं मे अज्ज विचितियं ॥ मू. (११६८) तहा य एत्य जम्मम्मि पुरिसो ताव मनेन वि ।
नेच्छिओ एत्तियं कालं सिविणंते वि कहिंचि वि॥ मू. (११६९) ता हा हा दुरायारा पाव-सीला अहन्निया।
अट्टमट्टाई चिंतंती तित्थयर-मासाइमो॥ मू. (११७०) तित्थयरेणावि अचंतं कहूँ कडयडं वयं।
अइदुद्धरं समादिहें उग्गं घोरं सुदुक्करं॥ मू. (११७१) तातिविहेण को सक्को एयं अनुपालेऊणं ।
वाया-कम्मं समायरणे बे रक्खं नो तइयं मनं ॥ मू. (११७२) अहवा चितिजई दुक्खं कीरई पुन सुहेण य ।
ता जो मनसा वि कुसीलो सकुसीलो सव्व-कजेसु॥ मू. (११७३) ताजं एत्थं इमं खलियं सहसा तुडि-वसेण मे।
आगयं तस्स पच्छित्तं आलोइत्ता लहुंचरं ।। मू. (११७४) सईण सील-वंताणं मझे पढमा महाऽऽरिया।
धुरम्म दियए रेहा एयं सग्गे विघूसई॥ मू. (११७५) तहा य पाय धूली मे सव्वो विवंदए जनो।
जगा किल सुज्झिज्जए मिमीए इति पसिद्धाए अहं जगे ॥ मू. (११७६) ता जइआलोयणं देमिता एवं पयडी-भवे ।
मम भायरो पिया-माया जाणित्ता हुंति दुक्खिए॥ मू. (११७७) अहवा कहवि पमाएणं मे मनसा विचिंतिय ।
तमालोइयं नचा मज्झ वग्गस्स को दुहो। मू. (११७८) जावेयं चिंतिउं गच्छेता वुद्धंतीए कंटगं।
फुडियं ठसत्ति पायतले ता निसन्ना पडुल्लिया। मू. (११७९) चिंतेइ हो एत्थ जम्मम्मि मज्झ पायम्मि कंटगं ।
न कयाइ खुत्तं ता किं संपयं एत्थ होहिइ॥ मू. (११८०) अहवा मुणियं तु परमत्थ-जाणगे अनुमती कया।
संघटुंतीए चिडल्लीए सीलं तेन विराहियं ॥ मू. (११८१) मूयंध-काण-बहिरं पि कुटुं सिडि विडि-विडिवडं।
जाव सीलंन खंडेइ ताव देवेहिं थुव्वइ ।। मू. (११८२) कंटगंचेव पाए मे खुतं आगासागासियं ।
एएणं जंअहं चुक्का तं मे लाभ महंतियं ।। मू. (११८३) सत्त वि साहाउ पायाले इत्थी जा मनसा विय ।
सीलं खंडेइ सा नेइ कहियंजननीए मे इमं ॥ मू. (११८४) ताजंन निवडई वजं पंसु-विट्ठी ममोवरिं।
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