Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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महानिशीथ-छेदसूत्रम् -८(२)/-/१४९८ चाउरंगस्सबलस्स विसेसओणंतस्स सुगविय नाम-गहणस्सपुरिस-सीहस्स सीलसुद्धस्स कुमारवस्से तिपउत्तिंआणेहजेमाहं निव्वुओ भवेज्जा ताहेनरवइणोपणामकाणं गोयमा गएतेनिउत्तपुतरिसे जाव णं तुरियं चल-चवल-जइण-कम-पवण-वेगेहिं णं आरुलहिऊणं जच्च-तुरंगमेहिं निउंजगिरिकंदरुद्देस-पइरिक्काओ खणेण पत्ते रायहाणि दिट्ठो य तेहिं वामदाहिणभुया-पल्लवेहिं वयणं सिरोरुदहे विलुपमाणो कुमारो तस्सय पुरओ सुवन्नाभरण-नेवच्छादस-दिसासु उज्जोयमाणी जय जय सद्दमंगल मुहलारयहरण-वावडोभयकर-कमल-विरइयंजली देवयातंचदळूणंविम्हियभूयमणे लिप्प-कम्म निम्मविए एयावसरम्मिउगोयमासहरिस-रोमंच-कंचुपुलइयसरीराए नमोअरहंताणं ति समुच्चरिऊणं भणिरे गयणट्ठियाए पवयण-देवयाए से कुमारे तं जहामू. (१४९९) जो दलइ मुट्टि-पहरेहि मंदरं धरइ करयले वसुहं।
सव्वोदहीण विजलं आयरिसइ एक घोट्टेणं । मू. (१५००) टाले सग्गाओ हरिं कुणइ सिवं तिहुयणस्स विखणेणं ।
अक्खंडिय सीलाणं कुद्धो विन सो पहुप्पेजा। मू. (१५०१) अहवा सो चिय जाओ गणिज्जए तिहुयणस्स वि स वंदो।
पुरिसो विमहिलिया वा कुलुग्गओ जो न खंडए सीलं ।। मू. (१५०२) परम-पवित्तं सप्पुरिस-सेवियं सयल-पाव-निम्महणं ।
सव्वुत्तम-सुक्ख-निहिं सत्तरसविहं जयइ सीलं॥ मू. (१५०३) ति भाणिऊणं गोयमा झत्ति मुक्का कुमारस्सोवरिं कुसुमवुट्ठि पवयण-देवयाए पुणो वि भणिउमाढत्ता देवया तं जहामू. (१५०४) देवस्स देंती दोसे पवंचिया अत्तणो स-कम्मेहिं।
न गुणेसु ठविंतऽप्पं मुहाई मुद्धाए जोएंति ।। मू. (१५०५) मज्झत्थभाववत्ती सम-दरिसी सव्व-लोय-वीसासो।
निक्खवय-परियत्तं दिव्वो न करेइ तं ढोए॥ भू. (१५०६) ताबुज्झिऊण सव्वुत्तमंजणा सील-गुण-महिड्डीयं ।
तामसभावं चिच्चा कुमार-पय-पंकयं नमह॥ मू. (१५०७) त्ति माणिऊणं असणं गया देवया इति ते छइल्ल-पुरिसे लहुंच गंतूण साहियं तेहिं नरवइणोतओआगओबहु-विकष्प-कल्लोल-मालाहिणंआउरिज्जमाणं-हियय-सागरोहरिसविसाय-वसेहिं भीऊडपायातत्थ-चकिर-हियओ सणियं गुज्झ-सुरंग-खडक्किया-दारेणं कंपंत सव्वगत्तो महया कोऊहल्लेणं कुमार-दसणुकंठिओ य तमुद्देसं दिट्ठो य तेनं सो सुगहियनामधेजो महायसोमहासत्तोमहानुभावो कुमार-महरिसीअपडिवाइमहोही पच्चएणंसाहेमाणो संखाइयाइभवाणुहूयं दुक्ख-सुहं सम्मत्ताइलंभं संसार-सहावं कम्मबंध-द्विती-विमोक्खमहिंसा-लक्खणमणनगारे वयरबंधेनरादीणंसुहनिसन्नो सोहम्माहिवईधरिओवरिपंडुरायवत्तोताहेयतंअदिठ्ठपुव्वं अच्चेरगं दट्टणं पडिबुद्धो सपरिग्गहो पव्वइओ य गोयमा सो राया परचक्काहिवई वि एत्थतरम्मि पहय-सुस्सर-गहिर-गंभीर-दुंदिभि-निग्घोस-पुव्वेणंसमुग्घुटुंचउव्विहं देवनि-काएणं (तंजहा)
मू. (१५०८) कम्मटुं-गठि-मुसुमूरण जय जय परमेट्ठी महायस।
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