Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 275
________________ २७२ महानिशीथ-छेदसूत्रम् -८(२)/-/१५२७ उपचारो चउत्थभत्तेणं सहिज्जइ एसा विजा सव्वगओण् इत्य् अ अरगप्अअर ग्अओ होइ उवट अ अ व नण् अ अ गणस्स वा अण् उ ण् ण् आ ए एसा सत्तवारा परिजवेयव्वा (नित्थारगो पारगो होइ) जे णं कप्पसमत्तीए विजा अभिमंतिऊणं विग्यविणाइगा आराहंति सूरे संगामे पविसंतो अपराजिओ होइ जिनकप्प-समत्तीए विज्जा अभिमंतिऊण खेमवहणी मंगलवहनी भवति । मू. (१५२८) चत्तारि सहस्साइं पंचसयाओ तहेव चत्तारि। सिलोगा वि य महानिसीहम्मि पाएण।। -x-x | षष्ठं छेदसूत्रं-महानिशीथं समाप्तम् मुनि दीपरत्न सागरेण संशोधिता सम्पादिता महानिशीय-छेदसूत्र- (मूल) परिसमाप्तं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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