Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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महानिशीथ-छेदसूत्रम् -७(१)/-/१४१८ महव्वयाइं पालेमि निरइयाराई निच्छिओ॥ मू. (१४१९) __ हंडी हा अहन्नो हं पावो पाव-मती अहं।
पाविठ्ठो पाव-कम्मो हं पावाहमायरो अहं ।। मू. (१४२०) कुसीलो भट्ट-चारित्ती भिल्लसूणोवमो अहं ।
चिलातो निक्किवो पावी कूर-कम्मीह निग्घिणो॥ मू. (१४२१) इणमो दुल्लभंलभिउं सामन्नं नाणं-दसणं ।
चारित्तं वा विराहेत्ता अनालोइय निंदिया।
गरहिय अकय-पच्छित्तो वावजंतो जइ अहं ।। मू. (१४२२) ता निच्छयं अनुत्तारे घोरे संसार-सागरे ।
निब्बुड्डो भव-कोडीहिं समुत्तरंतो न वा पुणो॥ मू. (१४२३) ताजा जरा न पीडेइ वाही जाव न केइ मे।
जाविंदियाई-न हायंति ताव धम्मंचरेत्तुंहं ।। मू. (१४२४) निद्दहमइरेमं पावाइयं निंदिउंगरहिंउं चिरं
पायच्छित्तं चरित्ताणं निक्कलंको भवामि हं ।। मू. (१४२५) निक्कलुस-निक्कलंकाणं सुद्ध-भावाण गोयमा।
तं नो नटुंजयं गहियं सुदूरामवि परिवलितुंणं॥ मू. (१४२६) एवमालोयणं दाउं पायच्छित्तं चरेत्तुणं ।
कलि-कलुस-कम्म-मल-मुक्के जइ नो सिज्झेज तक्खणं ॥ मू. (१४२७) ता वए देव-लोगम्हि निचुञ्जोए सयं पहे।
देव-दुंदुहि-निग्घोसे अच्छरा-सय-संकुले ।। मू. (१४२८) तओ चुया इहागंतु सुकुलुप्पत्तिं लभेत्तुणं ।
निम्विन्न-काम-भोगाय तवं काउं मया पुणो । मू. (१४२९) अनुत्तर-विमाणेसुंनिवसिऊनेहमागया।
हवंति धम्म-तित्थयरा सयल-तेलोक्क-बंधवा ।। मू. (१४३०) एस गोयम विन्नेए सुपसत्ये चउत्थे पए।
भावालोयण नाम अक्खय-सिवसोक्ख-दायगो त्ति बेमि॥ मू. (१४३१) से भयवं एरिसंपप्पा विसोहिं उत्तमं वरं ।
जे पमाया पुणो असई कत्थइ चुक्के खलेज वा॥ मू. (१४३२) तस्स किं तं विसोहि-पयं सुविसुद्धं चेव लिक्खए।
उयाहु नो समुल्लिक्खे संसयमेयं वियागरे । म. (१४३३) गोयमा निंदिउंगरहिउंसुदूरं पायच्छित्तं चरेत्तुणं ।
निक्खारिय-वस्थामिवाए खंपणं जो न रक्खए॥ मू. (१४३४) सो सुरभिगंध-गब्भिण-गंधोदय-विमल-निम्मल-पवित्ते।
मज्जिय-खीर-समुद्दे-गड्डाए जइ पडइ॥
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