Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 235
________________ २३२ महानिशीथ-छेदसूत्रम् -६/-/१२५० अथक्के हुंडि-दुद्धेणं कज्जतं कत्थ लब्भइ॥ मू. (१२५१) सम्मइंसणमेगम्मि बितियंजम्मे अनुव्वए। तइयं सामाइयंजम्मे चउत्थे पोसहं करे । मू. (१२५२) दुद्धरं पंचमे बंभं छठे सचित्त-वजणं। एवं सत्तट्ठ-नव-दसमे जम्मे उद्दिट्टमाइयं ।। मू. (१२५३) चेच्चेक्कारसमे जम्मे समण-तुल्ल-गुणो भवे । एयाए परिवाडिए संजयं कि न अक्खसि ।। मू. (१२५४) जंपुणो सोऊण मइविगलो बालयणो केसरिस्स व । सदं गय-जुव तसिउं-नासे-दिसोदिसिं॥ मू. (१२५५) तंएरिस-संजमंनाह सुदुल्ललिया सुकुमालया। सोऊणं पिनेच्छंति तणुट्ठीसुंकहं पुन॥ मू. (१२५६) गोयम तित्थंकरे मोत्तुं अन्नो दुल्ललिओ जगे। जइ अस्थि कोइ ता भणउ अह णं सुकुमालओ॥ मू. (१२५७) जेणं गभट्ठाणम्मि देविंदो अमय अंगुट्ठयं कयं । आहारं देइ भत्तीए संथवं सययं करे । मू. (१२५८) देव-लोग-चुए संते कम्मासेणं जहिं धरे । अभिजाहिति तहिं सययं हीरन्न-वुट्टी य वरिस्सइ। मू. (१२५९) गब्भावनाण तद्देसे ईति-रोगा य सत्तुणो। अनुभावेन खयंजंति जाय-मेत्ताण तक्खणे ।। मू. (१२६०) आगंपियासणाचउरो देव-संघा महीधरे। अभिसेयं सव्विड्डीए काउंस-ट्ठामे गया। मू. (१२६१) अहो लावन्नं कंती दित्ती रूवं अनोवमं । जिणाणंजारिसंपाय-अंगट्टग्गं न तंइहं। मू. (१२६२) सब्बेसु देव-लोगेसु सव्व-देवाण मेलियं । कोडाकोडिगुणं काउं जइ वि उण्हाणिज्जए॥ मू. (१२६३) अह जा अमर-परिग्गहिया नाण-त्तय-समन्निया। कला-कलाव-निलया जन-मनानंदकारय॥ मू. (१२६४) सयण-बंधव-परियारा देव-दानव-पूइया। पणइयण-पूरियासा भुवनुत्तम-सुहालया ।। मू. (१२६५) भोगिस्सरियं रायासिरिंगोयमा तंतवज्जियं । जा दियहा केइ भुंजंति ताव ओहीए जाणिउं । मू. (१२६६) खणभंगुरं अहो एयं लच्छी पाव-विवड्डणी। ता आनंता वि किं अम्हे चरित्तं नाणुचेट्ठिमो॥ __मू. (१२६७) जाव एरिस-मन-परिणामं ताव लोगंतिया सुरा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292