Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 228
________________ अध्ययनं: ६, उद्देशक : २२५ जहा-साहूणं साहूणीणंच पानोवरमे विन छिप्पे हत्थेणा विजंकूवतलाय-पोक्खरिणि-सरियाइमतिगयं उदगं ति केवलं तु जमेव विराहियं ववगय-सयल-दोसं फालुगं तस्स परिभोगं पन्नत्तं वीयरागेहिं ता सिक्खवेमि ताव एसा हु दुरायरा जेणं अत्रो को विन एरिस-समायारं पवत्तेइ त्ति चिंतिऊणं अमुगंअमुगंसमुद्दिसमाणाएपक्खित्तं असन-मज्झिम्मित देवयाएतंचतेनोवलक्खिउं सक्कियं ति देवयाए चरियं एएण कारणेणं ते सरीरं विहडियं ति न उनं फासुदग-परिभोगेणं ति ताहे गोयमा रज्जाए वि भावियं जहा एवमेयं न अन्नह त्ति चिंत्तऊण विन्नविओ केवली जहा भयवं जइ अहं जहुत्तं पायच्छित्तंचरामिता किं पन्नप्पइमज्झएयंतणुंतओ केवलिणा भणियंजहा-जइ कोइपायच्छित्तं पयच्छइ ता पन्नप्पइ रज्जाए भणियं जहा भयवं जइ तुमं चिय पायच्छित्तं पयच्छसि अनो को एरिसमहप्पा तओ केवलिणा भणियं जहा-दुक्करकारिए पयच्छामि अहं ते पच्छित्तं नवरं पच्छित्तं एवं नथि जेणं ते सुद्धी भवेजा रज्जाए भणियं भयवं किं कारणं ति केवलिना भणियं जहा जंते संजइ-वंद-पुरओ गिराइयंजहा मम फासुग-पानपरिभोगेन सरीरगं विहडियंति एय च दुट्ठ-पावमहा-समुद्दाएक्क-पिंडं तुह वयणं सोचा संखुद्धाओ सव्वाओ चेव इमाओ संजइओ चिंतियं च एयाहिं जहा-निच्छओ विमुच्चामो फासुओदगंतय-ज्झवसायस्सआलोइयं निंदियंगरहियं विरसदारुणं बद्ध-पुट्ठ निकाइयं तुगंपावरासिं तं च तए कुट्ठ-भगंदर-जलोदर-वाय-गुम्म-मास-निरोहहरिसागंडमालाइ-अणेग-वाहि-वेयणा-परिगय-सरीराएदारिद्द-दुक्ख-दोहग्ग-अयस-अब्भक्खाणंसंताव-उव्वेग-संदीविय-पज्जसियाए अनंतेहिं भव-गहणेहिं सुदीह-कालेणंतुअहन्निसाणुभवेयव्वं एएण कारणेणं एस इमा गोयमा सा रजज्जिया जाए अगीयत्थत्त-दोसेणं वायामेत्तेणं एव एमहंतं दुक्खदायगं पाव-कम्मं समज्जियंति । मू. (११४४) अगीयत्थ-दोसेन भाव सुद्धि न पावए। विना भावविसुद्धीए सकलुस-मनसो मुनी भवे ॥ मू. (११४५) अनु-थेव-कलुस-हिययत्तं अगीयत्थत्तदोसओ। काऊणं लक्खणज्जाए पत्ता दुक्ख-परंपरा॥ मू. (११४६) तम्हातं नाउ बुद्धेहिं सव्व-भावेन सव्वहा । गीयत्थेहिं भवित्ताणं कायव्वं निक्कलुसं मनं॥ मू. (११४७) भयवं नाहं वियाणामि लक्खणदेवी हुअज्जिया। जा अनुकलुसमगीयत्थत्ता काउंपत्ता दुक्ख-परंपरं ॥ मू. (११४८) गोयमापंचसुभरहेसु एरवएसु उस्सप्पिणी। अवसप्पिणीए एगेगा सव्वयालं चउवीसिया॥ मू. (११४९) सययमवोच्छित्तिए भूया तह य भविस्सती। अणाइ-निहणा एत्थ एसाधुव एत्थ जग-ट्टिई। मू. (११५०) अतीय-काले असीइमा तहियं जारिसगे अहयं । सत्त-रयणी-पमाणेणं देव-दानव-पणमिओ ।। 23|15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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