Book Title: Agam Suttani Satikam Part 23 Dashashrutskandh Aadi 3agams
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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२२८
महानिशीथ-छेदसूत्रम् -६/-/११८४
सय-सक्करं न फुट्टइ वा हिययंतं महछेगं । मू. (११८५) नवरं जई रूयमालोयंता लोगो एत्थ चिंतिही।
जहा-अमुगस्स धूयाए इयं मनसा अज्झवसियं॥ मू. (११८६) तंनंतह विपओगेणं परववएसेणालोइमो।
जहा-जइ कोइ रूयं अज्झवसइ पच्छित्तं तस्स होइ किं । मू. (११८७) तंचिय सोऊण काहामि तवेणं तत्थ कारणं ।
जंपुन भयवयाऽऽइटें घोरं अचंत-निट्ठरं॥ मू. (११८८) तंतवंसील-चारित्तं तारिसंजाव नो कयं।
तिविहं तिविहेणं नीसलं ताव पावं न खीयए। मू. (११८९) अहसा पर-ववएसेणं आलोइत्ता तवंचरे।
पायच्छित्तं निमित्तेणं पन्नासं संवच्छरे॥ मू. (११९०) छठ्ठ-ठुम-दसम-दुवालसेहिं लयाहिं नेइ दस वरिसे।
अकयमकारियमसंकप्पिएहिं परिभूयभिक्ख-लद्धेहिं ।। मू. (११९१) चणगेहिं दुन्नि वे भुजिएहिं सोलसय मासखमणेहिं।
वीसं आयामायंबिलेहिं आवस्सगं अछड्डेती॥ मू. (११९२) चरई य अदीनमनसा अह सा पच्छित्त-निमित्तं ।
ताहे गोयम सा चिंते-जंपच्छित्तं तयं कयं ।। मू. (११९३) ता किं तमेव न कयं मे जं मनसा अज्झवसियं ।
तया इयरहे विउ पच्छित्तं इयरहे व इमे कयं ॥ मू. (११९४) ता किं तं न समायरियं चितेंती निहणं गया।
___ उग्गं कहूं तवं घोरंदुक्करं पि चरित्तु सा॥ मू. (११९५) सच्छंद-पायच्छित्तेणं सकलुस-परिणाम-दोसओ।
कुच्छिय-कम्मा समुप्पन्ना वेसाए पडिचेडिया ।। मू. (११९६) खंडोडा-नाम चडुगारी मज-खडहडग-वाहिया।
विनीया सव्व-वेसाणं थेरीरू य चउग्गुणं ॥ मू. (११९७) लावण कंति कालिया वि बोडा जाया तहा विसा ।
अन्नया थेरी चिंतेइ मजंबोडाए जारिसं॥ मू. (११९८) लावन्न कंती-रूवं नत्थि भुवणे वि तारिसं।
ता विरंगामि एईए कन्ने नकं सहोठ्ठयं ॥ मू. (११९९) एसा उ न जाव विउप्पज्जे मम धूयं को वि नेच्छिही।
अहवा हा हा न जुत्तमिणं धूया तुल्लेसा वि मे नवरं ।। मू. (१२००) नवरं सुविनीया एसा विउप्पन्नत्थ गच्छिही।
ता तह करेमि जहा एसा देसंतरंगया विय । मू. (१२०१) नलभेज्जा कत्थइ थामं आगच्छइ पडिल्लिया।
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