Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) सूई शतक 11 उ० 2.3 3 ( 169 कहिं गच्छंति कहिं उववज्जति किं नेरइएसु उववज्जति तिरिक्खजोणिएसु उववज्जति एवं जहा वक्कंतीए उव्वट्टणाए वणस्सइकाइयाणं तहा भाणियव्वं 31 / श्रह भंते ! सव्वपाणा सव्वभूया सव्वजीवा सव्वसत्ता उप्पलमूलत्ताए उप्पलकंदत्ताए उप्पलनालताए उप्पलपत्तत्ताए उप्पलकेसरत्ताए उप्पलकन्नियत्ताए उप्पलथिभुगत्ताए उववनपुव्वा ?, हंता गोयमा ! असति अदुवा श्रणतक्खुत्तो 40 / सेवं भंते ! सेवं भंते ति जाव विरहति 41 // सू०४०१ // उप्पलुद्दे सए // _ इति एकादशमशतके प्रथम उद्देशकः // 11-1 // // अथ एकादशमशतके शालूकाख्य-द्वितीयोद्देशकः // सालुए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे अणेगजीवे ?. गोयमा ! एगजीवे एवं उप्पलुहे सग-वत्तव्वया अपरिसेसा . भाणियन्वा जाव अणंतखुत्तो, नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उकोसेणं धणुपुहुत्तं, सेसं तं चेव / सेवं भंते ! सेवं भंतेत्ति जाव विहरति / सूत्रं 410 // 11-2 // // अथ एकादशमशतके पलाशाख्य-तृतीयोदशकः // : पलासे णं भंते ! एगपत्तए कि एगजीवे अणेगजीवे ?, एवं उप्पलुद्दे सगवत्तव्वया अपरिसेसा भाणियब्या, नवरं सरीरोगाहणा जहन्नेणं अंगुलस्स असंखेजइभागं उक्कोसेणं गाउयपुहुत्ता, देवाएएसु चेव न उववज्जंति 1 / लेसासु ते णं भंते ! जीवा किं कराहलेसे नीललेसे काउलेसे ?, गोयमा / कराहलेस्से वा नीललेस्से वा काउलेस्से वापछव्वीसं भंगा, सेसं तं चेव 2 / सेवं भंते ! 2 त्ति जाव विहरति 3 ॥सूत्रं 411 // 11-3 //
![](https://s3.us-east-2.wasabisys.com/jainqq-hq/b743cac974d4a6fa3f9741ed8fcd6fe486597027cf1d219c780f3751ab748ea9.jpg)
Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468