Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 416
________________ श्रीमद्व्याख्याप्रज्ञप्ति (श्रीमद्भगवती) सूत्र : शतकं 11 : उ० 12 ) [ 399 वा अवचयेति वा 2 / तए णं तस्स सुदंसणस्स सेटिम्स समणस्स भगवश्रो महावीरस्त अंतियं एयम8 सोचा निसम्म सुभेणं अज्झवसाणेणं सुभेणं परिणामेणं लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तयावरणिजाणं कम्माणं खोवसमेणं ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स सन्नीपुव्वे जातीसरणे समुप्पन्ने एयमट्ठ सम्म अभिसमेति 3 / तए णं से सुदंसणे सेट्ठी समणेणं भगवया महावीरेणं संभारिय-पुन्वभवे दुगुणाणीय-सडसंवेगे आणंदंसु-पुन्ननयणे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ 2 वंदइ नमसइ 2 ता एवं वयासी-एवमेयं भंते ! जाव से जहेयं तुझे वदहत्तिकट्टु उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवकमइ सेसं जहा उसमदत्तस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणे 4 / नवरं चोइस पुव्वाइं अहिजइ, बहुपडिपुन्नाई दुवालस वासाई सामन्नपरियागं पाउणइ, सेसं तं चे 5 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति 6 // सूत्रं 432 // महब्बलो समत्तो // // इति एकादशमशतके एकादशम उद्देशकः // 11-11 // ॥अथ एकादशमशतके आलभिकाख्य-द्वादशमोशद्देशकः॥ ... तेणं कालेणं 2 थालभिया नाम नगरी होत्था वन्नो, संखवणे चेइए वनयो, तत्थ णं श्रालंभियाए नगरीए बहवे इसिभदपुत्तपामोक्खा समणोवासया परिखसंति अड्डा जाव अपरिभूया अभिगयजीवाजीवा जाव विहरंति 1 / तए णं तेसिं समणोवासयाणं अन्नया कयावि एगयो सहियाणं समुवागयाणं संनिविट्ठाणं सन्निसन्नाणं अयमेयाख्वे मिहो कहासमुल्लावे समुप्पजित्था-देवलोगेसु णं अजो ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पराणता ?, तए णं से इसिभद्दपुत्ते समणोवासए देवट्टितीगहिय? ते समणोवासए एवं वयासी-देवलोएसु णं अजो ! देवाणं जहराणेणं दसवाससहस्साई ठिती पराणत्ता, तेण परं समयाहिया दुसमयाहिया जाव


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