Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 451
________________ 434 / [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः। द्वितीयो विमागा .. // अथ द्वादशमशतके नागाख्याष्टमोद्दशकः // तेणं कालेणं तेणं समएणं जाव एवं वयासी-देवे णं भंते ! महड्डीए 'जाव महेसक्खे अणंतरं चयं चइत्ता बिसरीरेसु नागेसु उववज्जेज्जा ?, हंता गोयमा ! उववज्जेजा 1 / से णं तत्थ अच्चिय-वंदिय-पूइय-सकारिय-सम्मा "णिए दिब्बे सच्चे सचोवाए संनिहिय-पाडिहरे यावि भवेज्जा ?, हंता भवेजा 2 / से णं भंते ! तोहितो अणंतरं उव्वट्टित्ता सिमेजा बुज्झेजा जाव अंतं करेजा ?, हंता सिझिजा जाव अंतं करेजा 3 / देवे णं. भंते ! महड्डीए एवं चेव जाव विसरीरेसु मणीसु उववज्जेजा, एवं चेव जहा नागाणं 4 / देवे णं भंते ! महड्डीए जाव बिसरीरेसु रुवखेसु उववज्जेजा ?, हंता उववज्जेजा एवं चेव 5 / नवरं इमं नाणत्तं जाव सन्निहियपाडिहेरे लाउल्लोइयमहिते यावि भवेज्जा ?, हंता भवेजा, सेसं तं चेव जाव अंतं करेजा 6 // सूत्रं 451 // अह भंते ! गोलंगूल-वसभे कुक्कुड-वसभे मंडुक्क-वसभे एए णं निस्सीला निव्वया निग्गुणा निम्मेरा निप्पचक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं सागरोवमट्टितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जेजा ? 1 / समणे भगवं महावीरे वागरेइ-उववजमाणे उववन्नेत्ति वत्तव्वं सिया 2 / अह भंते ! सीहे वग्घे जहा उस्सप्पिणीउद्देसए जाव परस्सरे एए णं निस्सीला एवं चेव जाव वत्तव्वं सिया 3 / अह भंते ! ढंके कंक वि(पि)लए मग्गु(ड्ड)ए सिखीए, एए णं निस्सीला जाव उववज्जेज्जा ?; सेसं तं चेव जाव वत्तव्यं सिया 4 / सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरइ // सूत्रं 460 // // इति द्वादशमशतके अष्टम उद्देशकः // 12--8 //

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