Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 02
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 304 ) - ( श्रीमदागमसुधासिन्धुः // द्वितीयों विमानों फलाणि य बीयाणि य हरियाणि य ताणि श्रणुजाणउत्ति कटु पुरच्छिम दिसं पसरति पुरच्छिमं दिसं पसरिता, जाणि य नत्थ कंदाणि य जाव हरियाणि य ताइं गेराहइ 2 किढिणसंकाइयं भरेइ किढिसंकाइयं भरित्ता दम्भे य कुसे य समिहायो य पत्तामोडं च गेराहेइ 2 जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ 2 किढिणसंकाइयगं ठवेइ किढिणसंकाइयं उवित्ता वेदि वह इ 2 उक्लेवणसंमजणं करेइ 2 ता दन्भ-सगन्भ-कलसाहत्थगए जेणेव गंगा महानदी तेणेव उवागच्छइ गंगामहानदीं श्रोगाहेति 2 जलमजणं करेइ 2 जलकीडं करेइ 2 जलाभिसेयं करेति 2 श्रायते चोक्खे परमसुइभूए देवयपिति-कयकज्जे दब्भ-सगब्भ-कलसाहस्थगए गंगाश्रो महानईश्रो पच्चुत्तरइ 2 जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छइ तेणेव उवागच्छित्ता दन्भेहि य कुसेहि य वालुयाएहि य वेतिं रएतिवेति रएत्ता सरएणं अरणि महेति सरएणं श्ररणिं महेत्ता अग्गि पाडेति 2 अग्गि संधुक्केइ 2 समिहाकट्टाई पक्खिवइ समिहाकट्ठाई पक्खिवित्ता अग्गि उज्जालेइ अग्गि उज्जालेता-'अग्गिस्स दाहिणे पासे, सत्तंगाई समादहे। तंजहा-सकहं वकलं गणं, सिजा भंडं कमंडलु॥१॥ दंडदारुतहा पाणं अहे ताई समादहे 13 / महुणा य घएण य तंदुलेहि य अग्गि हुणइ, अग्गि हुणित्ता चरु साहेइ, चरु साहेत्ता बलिं वइस्सदेवं करेइ बलिं वइस्सदेवं करेत्ता अतिहिप्पूयं करेइ अतिहिपूयं करेत्ता तो पच्छा अप्पणा आहारमाहारेति, तए णं से सिवे रायरिसी दोच्च छटुक्खमणं उवसंपजित्ताणं विहरइ 14 / तए णं से सिवे रायरिसी दोच्चे छ?क्खमणपारणगंसि पायावणभूमीयो पचोरुहइ पायावणभूमीयो पचोरुहित्ता एवं जहा पढमपारणगं नवरं दाहिणगं दिसं पोखेति 2 दाहिणाए दिसाए जमे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं तं चेव श्राहारमाहारेइ, तए णं से सिवरायरिसी तव्चं छट्टक्खमणं उपसंपजित्ताणं विहरति 15 / तए णं से सिवे रायरिसी सेसं तं चेव नवरं पञ्चच्छिमाए दिसाए वरुणे महाराया पत्थाणे पत्थियं सेसं l!
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