Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

Previous | Next

Page 427
________________ दशवैकालिक-मूलसूत्रम्। અધ્યયન પહેલું (१) धम्मो मंगलमुक्किटं, अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति, जस्स धम्मे सया मणो ॥१-१॥ (२) जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियह रसं । ण य पुर्फ किलामेइ, सो अ पीणेइ अप्पयं ॥१-२॥ (3) एमेए समणा मुत्ता, जे लोए संति साहुणो । विहंगमा व पुप्फेसु, दाणभत्तेसणे रया ॥१-३॥ (४) वयं च वित्तिं लब्भाभो, न य कोइ उवहम्मई । ____अहागडे रीयंते, पुप्फेसु भमरा जहा ॥१-४॥ (५) महुगारसमा बुद्धा, जे भवंति अणिस्सिआ। नाणापिंडरया दंता, तेण वुच्चंति साहुणो-त्ति बेमि ॥१-५॥ અધ્યયન બીજું (६) कहं नु कुज्जा सामन्नं ?, जो कामे न निवारए । पए पए विसीअंतो, संकप्पस्स वसंगओ ॥२-१॥ (७) वत्थगंधमलंकारं, इत्थीओ सयणाणि अ (य)। __ अच्छंदा जे न भुंजंति, न से चाइ त्ति वुच्चइ ॥२-२॥ (८) जे अ कंते पिए भोए, लद्धे विपिट्टि कुव्वइ । साहीणे चयई भोए, से हु चाइ ति वुच्चइ ॥२-३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494