Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 478
________________ भूण सूत्र] ४४॥ (४४२) आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूसमाणो परिगिज्झ वक्कं । जहोवइटें अभिकंखमाणो, गुरुं तु नासाययइ स पुज्जो ॥९-३-२॥ (४४३) राय(इ)णिएसु विणयं पउंजे, डहरा वि य जे परियायजिट्ठा । नीअत्तणे वट्टइ सच्चवाई, ओ(उ)वायवं वककरे स पुज्जो ॥९-३-३॥ (४४४) अन्नायउंछं चरइ विसुद्धं, जवणट्टया समुआणं च निच्च । अल अं, नो परिदेवइज्जा, लढुं न विकत्थयइ स पुज्जो ॥९-३-४॥ (४४५) संथारसि(से जासणभत्तपाणे, अप्पिच्छया अइलाभेऽवि संते । जो एवमप्पाणभितोसइ(ए)जा; संतोसपाहन्नरए स पुज्जो ॥९-३-५॥ (४४६) सका सहेउं आसाइ कंटया, अओमया उच्छहया नरेणं । अणासए जो उ सहेज्ज कंटए, वईमए कन्नसरे स पुज्जो ॥९-३-६॥ (४४७) मुहुत्तदुक्खा उ हवंति कंटया, अओमया तेऽवि तओ सुउद्धरा । वाया दुरुत्ताणि दुरुद्धराणि, वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ॥९-३-७॥ (४४८) समावयंता वयणाभिघाया, कन्नंगया दुम्मणिअं जणंति । धम्मुत्ति किच्चा परमग्गमूरे, जिइंदिए जो सहइ स पुज्जो ॥९-३-८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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