Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

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Page 480
________________ મૂળ સૂત્ર ] અ॰ ૯, ઉદ્દેસે ચાથા (सूत्र - १६) सुअं मे आउ ! तेणं भगवया एवमक्खायंइह खलु थेरेहिं भगवंतेहि चत्तारि विणयसमा हिट्ठाणा पन्नत्ता, करे खलु तेथेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिडाणा पन्नत्ता ? इमे खलु ते थेरेहिं भगवंतेहिं चत्तारि विणयसमाहिट्ठाणापन्नत्ता, तंजहा - विणयसमाही, सुअसमाही, तवसमाही, आयारसमाही | अ० ९-३० ४- सू - १॥ (४५६) विणए सुए अ तवे, आयारे निचपंडिआ । अभिरामयति अप्पाणं, जे भवंति जिइंदिआ ॥९-४-१॥ (सूत्र - १७) चउव्विहा खलु विणयसमाही भवइ, तं जहाअणुसासिज्जतो सुस्ससह - १, सम्मं संपडिवज्जइ - २, वेयमाराहर - ३, न य भवइ अत्तसंपग्गहिए - ४, चउत्थं पर्यं भवइ ॥ अ० ९-उ० ४, सू० २ || भवइ अ इत्थ सिलोगो ।। (४५७) पेहे हिआणुसासणं, सुस्सूसई तं च पुणो अहिट्ठिए । न यमाणमएण मज्जइ, विषयसमाहिआययट्ठिए ૪૪૩ 119-8-211 (सूत्र - १८) चउव्विा खलु सुअसमाही भवइ, तं जहा - सुअं मे भविस्सइति अझाइअ भवइ - १, एगग्गचित्तो भवि - स्सामित्ति अज्झाइअव्वं भवइ - २, अप्पाणं ठावइस्सा मित्ति अज्झाइअन्नं भवइ - ३, ठिओ परं ठावइस्सामित्ति अज्झाइअन्वं भवइ - ४, चउत्थं पयं भवइ ॥ अ० ९-३०४, सू - ३॥ भवइ अ इत्थ सिलोगो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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