Book Title: Agam 42 Mool 03 Dash Vaikalik Sutra
Author(s): Bhadrankarvijay
Publisher: Shashikant Popatlal Trust Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 482
________________ મૂળ સૂત્ર ] અધ્યયન દેશમુ (४६३ ) निक्खम्ममाणाइ अ बुद्धवयणे, निचं चित्तसमाहिओ हविज्जा । इत्थीण वसं न आवि गच्छे; वंतं न पडिआइ जे स भिक्खू ||१०- १॥ ( ४६४) पुढविं न खणे न खणावए, सीओदगं न पिए न पिआवए । अगणि-सत्थं जहा सुनिसिअं; तं न जले न जलावए जे स भिक्खू ||१०- २ | (४६५) अनिलेण न वीए न वीयावए, हरियाणि न छिंदे न छिंदावए । वीयाणि सया विवज्जयंतो; सच्चित्तं नाहारए जे स भिक्खू ||१० - ३ || (४६९) वहणं तस्थावराण होइ, पुढवितणकट्ठनिस्सिआणं । तहा उद्देसिअं न भुंजे; नो वि पए न पयावर जे स भिक्खू ||१०-४ ॥ (४६७) रोइअ (य) नायपुत्तवयणे, अत्तसमे मन्निज्ज छप्पि काए । पंच य फासे महव्ययाई; (४६८) चत्तारि वमे सया कसाए, धुवजोगी हविज्ज बुद्धवयणे । अहणे निज्जायरूवरयए; ૪૪૫ पंचासव संवरे जे स भिक्खू ||१०-५॥ Jain Education International गिहिजेागं परिवज्जए जे स भिक्खू ||१० - ६॥ (४६८) सम्मद्दिट्ठी सया अमूढे, अस्थि हु नाणे तवे संजमे अ । तवसा धुणइ पुराणपावर्ग; मणवय काय सुसंकुडे जे स भिक्खू ||१० - ७॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494